Hazrat Yusuf A.s. Ka Waqia in Hindi | यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) का वाकिया ।

नबी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की दास्तान: एक सबक़-आमोज़ इस्लामी क़िस्सा | Hazrat Yusuf A.s Ka Waqia.

तफ़्सील: या अल्लाह! यह क़िस्सा हमारे प्यारे नबी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की ज़िंदगी का एक ईमान अफरोज़ और इबरतनाक वाक़िया है, जो हिन्दी ज़बान में लिखा गया है और इसमें उर्दू के इस्लामी अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किया गया है। इस दास्तान में यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की विलादत, उनकी ज़िंदगी के अहम वाक़ियात, और अल्लाह के पैग़ाम को क़ायम रखने की उनकी जद्दोजहद को तफ़्सील से बयान किया गया है। यह क़िस्सा ईमान, सब्र, और अल्लाह की रहमत पर यक़ीन की अहमियत को ज़ाहिर करता है, जो हर मोमिन के लिए मशाल-ए-राह है।


Hazrat Yusuf A.s. Ka Waqia in Hindi | यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) का वाकिया ।


मुक़द्दमा | Muqdma

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम! नबी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) अल्लाह तआला के उन मुंतख़ब नबियों में से हैं, जिन्हें रब ने अपनी हिकमत और ख़ूबसूरती के साथ नवाज़ा और हक़ की राह पर चलने की तौफ़ीक़ दी। उनकी दास्तान क़ुरआन-ए-पाक में सूरह यूसुफ़ में तफ़्सील से बयान की गई है, जिसे अल्लाह ने “अहसनुल क़सस” यानी सबसे हसीन क़िस्सा क़रार दिया। यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की ज़िंदगी सब्र, इख़लास, और अल्लाह की रहमत का एक ज़बरदस्त नमूना है। यह क़िस्सा हर उस शख़्स के लिए इबरत है, जो मुसीबतों में सब्र और अल्लाह पर तवक्कुल करता है। आइए, इस दास्तान में नबी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की हयात के अहम वाक़ियात को जानें।

यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की विलादत और बचपन | Yusuf A.s Ka Bachpan

नबी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) के बेटे थे, जो ख़ुद भी अल्लाह के नबी थे। यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह ने हुस्न-ए-जमाल और अक़्लमंदी से नवाज़ा था। उनकी ख़ूबसूरती और नेकी की वजह से उनके वालिद हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) उनसे बेहद मुहब्बत करते थे। मगर यह मुहब्बत उनके भाइयों में हसद की वजह बनी।

एक रात यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने एक ख़्वाब देखा, जिसमें ग्यारह सितारे, सूरज, और चाँद उन्हें सजदा कर रहे थे। जब उन्होंने यह ख़्वाब अपने वालिद को सुनाया, तो हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया, “ऐ मेरे बेटे! यह ख़्वाब अपने भाइयों को न सुनाना, वरना वे तुम्हारे ख़िलाफ़ साज़िश करेंगे।” अल्लाह ने यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को ख़्वाबों की ताबीर का इल्म भी अता फ़रमाया था, जो उनकी ज़िंदगी में बाद में बहुत काम आया।

भाइयों की साज़िश और कुएँ का वाक़िया

यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) के भाइयों में हसद की आग भड़क रही थी। उन्होंने फ़ैसला किया कि यूसुफ़ को रास्ते से हटाना ज़रूरी है। एक दिन, उन्होंने अपने वालिद से इजाज़त माँगी कि यूसुफ़ को उनके साथ जंगल ले जाएँ। हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) को कुछ शक हुआ, मगर भाइयों के ज़ोर देने पर उन्होंने इजाज़त दे दी।

भाइयों ने यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को एक गहरे कुएँ में डाल दिया और उनके कपड़ों पर ख़ून लगाकर वालिद को जाकर कहा कि यूसुफ़ को भेड़िया खा गया। हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) यह सुनकर ग़मगीन हो गए, मगर उन्होंने सब्र किया और अल्लाह पर भरोसा रखा। उधर, कुएँ में डाले गए यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह की रहमत ने बचाया। एक कारवाँ गुज़रा, जिसने कुएँ से पानी निकालते वक़्त यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को देखा और उन्हें निकालकर मिस्र ले गया। वहाँ यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को एक ग़ुलाम की हैसियत से बेच दिया गया।

मिस्र में यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की ज़िंदगी | Egypt me Yusuf A.s. Ki Zindagi 

मिस्र में यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को एक अज़ीज़-ए-मिस्र ने ख़रीदा, जो मिस्र का एक बड़ा ओहदेदार था। अज़ीज़ की बीवी, ज़ुलैख़ा, ने यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की ख़ूबसूरती से प्रभावित होकर उन्हें ग़लत रास्ते पर लाने की कोशिश की। मगर यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह का ख़ौफ़ रखा और फ़रमाया, “मैं अपने रब से डरता हूँ, जिसने मुझे इज़्ज़त दी।” उनकी इस नेकी की वजह से अल्लाह ने उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाई।

ज़ुलैख़ा की साज़िश की वजह से यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को क़ैदख़ाने में डाल दिया गया। मगर वहाँ भी उन्होंने सब्र और इख़लास का दामन नहीं छोड़ा। क़ैदख़ाने में उन्होंने अपने साथी क़ैदियों के ख़्वाबों की ताबीर बताई, जो सच्ची साबित हुई। यह उनकी ज़िंदगी का एक और अहम मोड़ था, जो उन्हें मिस्र के बादशाह के दरबार तक ले गया।

ख़्वाबों की ताबीर और मिस्र की हुकूमत

मिस्र के बादशाह ने एक ख़्वाब देखा, जिसमें सात मोटी गायों को सात दुबली गायें खा रही थीं, और सात हरी खेतियाँ और सात सूखी खेतियाँ थीं। कोई भी इस ख़्वाब की ताबीर न बता सका। तब एक क़ैदी, जिसे यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने ताबीर बताई थी, ने बादशाह को उनके बारे में बताया। यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को बादशाह के सामने पेश किया गया।

यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया, “मिस्र में सात साल तक ख़ुशहाली रहेगी, उसके बाद सात साल का क़हत (सूखा) आएगा। आपको ख़ुशहाली के सालों में अनाज जमा करना चाहिए ताकि क़हत में लोग भूखे न मरें।” बादशाह उनकी अक़्लमंदी और इख़लास से बहुत मुतास्सिर हुआ और उसने यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को मिस्र का ख़ज़ानची मुक़र्रर कर दिया। इस तरह, यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) एक ग़ुलाम से मिस्र के अज़ीम ओहदेदार बन गए।

भाइयों से मुलाक़ात और माफ़ी

जब मिस्र में क़हत आया, तो यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) के भाई अनाज लेने मिस्र आए। वे अपने भाई को पहचान न सके, मगर यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने उन्हें पहचान लिया। उन्होंने अपने भाइयों को इम्तिहान लिया और आख़िरकार अपनी हक़ीक़त ज़ाहिर की। उन्होंने अपने भाइयों को माफ़ कर दिया और फ़रमाया, “आज तुम्हें कोई मलामत नहीं, अल्लाह तुम्हें माफ़ करे।”

यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने अपने वालिद हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) और पूरे ख़ानदान को मिस्र बुलाया। जब हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) अपने बेटे से मिले, तो उनका ग़म ख़ुशी में बदल गया। यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) का ख़्वाब, जिसमें सूरज, चाँद, और ग्यारह सितारे उन्हें सजदा कर रहे थे, सच्चा साबित हुआ।

यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की तालीमात और विरासत

नबी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की दास्तान हमें कई अहम सबक़ सिखाती है। उन्होंने हमें बताया कि अल्लाह पर पूरा यक़ीन और सब्र हर मुसीबत को आसान कर देता है। उनकी ज़िंदगी में कुएँ से लेकर क़ैदख़ाने तक, हर मुश्किल में अल्लाह की रहमत उनके साथ थी। उन्होंने हमें सिखाया कि इख़लास और नेकी की राह पर चलने से अल्लाह इज़्ज़त और कामयाबी अता फ़रमाता है।

यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की माफ़ी और रहमदिली हमें सिखाती है कि हमें अपने दुश्मनों को भी माफ़ करना चाहिए। उनकी ज़िंदगी का हर वाक़िया, चाहे वह भाइयों की साज़िश हो, क़ैदख़ाने की मुसीबत हो, या मिस्र की हुकूमत हो, हमें अल्लाह की रहमत और हिकमत पर यक़ीन करना सिखाता है।

ख़ातमा

नबी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की दास्तान इस्लामी तारीख़ का एक हसीन और इबरतनाक हिस्सा है। उनकी ज़िंदगी हमें सिखाती है कि अल्लाह की राह पर चलने वालों को कभी मायूसी नहीं होती। यह क़िस्सा ईमान, सब्र, और माफ़ी का पैग़ाम देता है। यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की ज़िंदगी हर उस शख़्स के लिए मिसाल है जो मुश्किल वक़्त में अल्लाह पर भरोसा रखता है। अल्लाह तआला हम सबको यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की तरह सब्र, इख़लास, और नेकी की राह पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।


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