पैगंबर मूसा (अ.स.) का वाकिया हिंदी में । Prophet Musa A.s. Story in Hindi
नबी मूसा (अलैहिस्सलाम) की दास्तान: एक ईमान अफरोज़ इस्लामी क़िस्सा
तफ़्सील: या अल्लाह! यह क़िस्सा हमारे प्यारे नबी मूसा (अलैहिस्सलाम) की ज़िंदगी का एक ईमान बढ़ाने वाला और सबक़-आमोज़ वाक़िया है, जो हिन्दी ज़बान में लिखा गया है और इसमें उर्दू के इस्लामी अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किया गया है। इस दास्तान में मूसा (अलैहिस्सलाम) की विलादत, उनकी हयात के अहम मोड़, और अल्लाह के पैग़ाम को फैलाने की उनकी अज़ीम जद्दोजहद को तफ़्सील से बयान किया गया है। यह क़िस्सा ईमान, सब्र, और अल्लाह की राह में क़ुर्बानी की अहमियत को ज़ाहिर करता है, जो हर मोमिन के लिए मशाल-ए-राह है।
मुक़द्दमा
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम! हमारे नबी मूसा (अलैहिस्सलाम) अल्लाह के चुनिंदा नबियों में से हैं, जिन्हें रब तआला ने अपने पैग़ाम को दुनिया तक पहुँचाने और बन्दों को हक़ की राह दिखाने के लिए मुंतख़ब फ़रमाया। उनकी दास्तान क़ुरआन-ए-पाक में कई मर्तबा ज़िक्र हुई है, ख़ास तौर पर सूरह अल-क़सस, सूरह ताहा, और सूरह अल-अराफ़ में। मूसा (अलैहिस्सलाम) की ज़िंदगी ईमान, सब्र, और अल्लाह के हुक्म की तामील का एक ज़बरदस्त नमूना है। यह क़िस्सा न सिर्फ़ इस्लामी तारीख़ का हिस्सा है, बल्कि हर उस शख़्स के लिए इबरत है जो अपनी ज़िंदगी में मुश्किलात का सामना करता है। आइए, इस दास्तान में हम मूसा (अलैहिस्सलाम) की हयात के अहम वाक़ियात को तफ़्सील से जानें।
मूसा (अलैहिस्सलाम) की विलादत और इब्तिदाई ज़िंदगी
मूसा (अलैहिस्सलाम) की पैदाइश मिस्र में उस वक़्त हुई जब फिरौन का ज़ुल्म अपने उरूज पर था। फिरौन एक ज़ालिम और बेरहम हाकिम था, जिसने बनी इसराइल पर सख़्त ज़ुल्म ढाए। उसे एक नुबूवत मिली थी कि बनी इसराइल के एक नौजवान बच्चे की वजह से उसकी सल्तनत को ख़तरा होगा। इस ख़ौफ़ की वजह से उसने हुक्म दिया कि बनी इसराइल के तमाम नवजात लड़कों को क़त्ल कर दिया जाए।
मूसा (अलैहिस्सलाम) की वालिदा को अल्लाह की तरफ़ से इल्हाम हुआ कि वे अपने बच्चे को एक टोकरी में रखकर नील नदी में बहा दें। या अल्लाह! एक माँ के लिए यह कितना सख़्त फ़ैसला था, लेकिन उन्होंने अल्लाह पर पूरा भरोसा रखा। मूसा (अलैहिस्सलाम) की वालिदा ने टोकरी को नदी में छोड़ा, और अल्लाह की रहमत से वह टोकरी फिरौन के महल तक जा पहुँची। फिरौन की बीवी, हज़रत आसिया, जो एक नेक और रहमदिल ख़ातून थीं, ने उस बच्चे को देखा और उसे गोद ले लिया। इस तरह, मूसा (अलैहिस्सलाम) उसी फिरौन के महल में पले-बढ़े, जिसने उनकी क़ौम पर ज़ुल्म किए थे।
मूसा (अलैहिस्सलाम) की जवानी और एक ग़ैर-इरादी वाक़िया
जब मूसा (अलैहिस्सलाम) जवान हुए, तो अल्लाह ने उन्हें जिस्मानी ताक़त और अक़्लमंदी अता फ़रमाई। एक दिन, जब वे शहर में तफ़रीह कर रहे थे, उन्होंने देखा कि एक मिस्री शख़्स बनी इसराइल के एक आदमी पर ज़ुल्म कर रहा था। मूसा (अलैहिस्सलाम) ने उस मिस्री को रोकने की कोशिश की, मगर ग़ैर-इरादी तौर पर उनकी एक मुक्की से वह मिस्री मर गया।
यह वाक़िया मूसा (अलैहिस्सलाम) के लिए बहुत बड़ा सदमा था, क्योंकि उनका इरादा क़त्ल करना नहीं था। उन्हें ख़ौफ़ हुआ कि फिरौन के सिपाही उन्हें पकड़ लेंगे। लिहाज़ा, उन्होंने मिस्र छोड़ने का फ़ैसला किया और मिदियन की तरफ़ रवाना हो गए। यह सफ़र उनकी ज़िंदगी का एक अहम मोड़ था, जहाँ उन्हें अल्लाह की तरफ़ से नई ज़िम्मेदारियाँ मिलीं।
मिदियन में मुलाक़ात और निकाह
मिदियन पहुँचकर मूसा (अलैहिस्सलाम) ने एक कुएँ के पास कुछ औरतों को देखा जो अपने जानवरों को पानी पिलाने की कोशिश कर रही थीं, मगर कुछ चरवाहों की वजह से उन्हें तकलीफ़ हो रही थी। मूसा (अलैहिस्सलाम) ने उनकी मदद की और उनके जानवरों को पानी पिलाया। यह नेक अमल देखकर उन औरतों के वालिद, जो हज़रत शुएब (अलैहिस्सलाम) थे, ने मूसा (अलैहिस्सलाम) को अपने घर बुलाया।
हज़रत शुएब (अलैहिस्सलाम) ने मूसा (अलैहिस्सलाम) की इमानदारी और मेहनत को देखकर अपनी बेटी से उनके निकाह का प्रस्ताव रखा। मूसा (अलैहिस्सलाम) ने इस प्रस्ताव को क़बूल किया और मिदियन में कुछ अरसा गुज़ारा। इस दौरान, उन्होंने एक सादा ज़िंदगी गुज़ारी और अपने ख़ानदान की ज़िम्मेदारियाँ निभाईं।
अल्लाह का बुलावा और नबूवत
एक दिन, जब मूसा (अलैहिस्सलाम) अपने ख़ानदान के साथ सफ़र कर रहे थे, तो उन्होंने तूर पहाड़ पर एक अजीब नूर देखा। वे उस नूर की तरफ़ गए, और वहाँ अल्लाह तआला ने उनसे कलाम फ़रमाया। क़ुरआन-ए-पाक में इस वाक़िए का ज़िक्र सूरह ताहा में यूं है:
“जब वह आग के पास आए, तो उन्हें पुकारा गया, ‘ऐ मूसा! मैं ही तुम्हारा रब हूँ, अपनी जूतियाँ उतार दो, क्योंकि तुम मुक़द्दस वादी-ए-तुवा में हो।’” (सूरह ताहा: 11-12)
अल्लाह तआला ने मूसा (अलैहिस्सलाम) को नबी बनाया और उन्हें फिरौन के पास जाकर अल्लाह का पैग़ाम पहुँचाने का हुक्म दिया। मूसा (अलैहिस्सलाम) को दो मोजिज़े अता किए गए: एक उनका असा जो साँप बन सकता था, और दूसरा उनकी हथेली जो नूर-ए-जलाल से चमकती थी। अल्लाह ने उनके भाई हज़रत हारून (अलैहिस्सलाम) को उनका मददगार मुक़र्रर किया, क्योंकि मूसा (अलैहिस्सलाम) को अपनी ज़बान में कुछ कमी महसूस होती थी।
फिरौन के सामने हक़ का पैग़ाम
मूसा (अलैहिस्सलाम) और हारून (अलैहिस्सलाम) मिस्र वापस आए और फिरौन के दरबार में हाज़िर हुए। उन्होंने फिरौन को अल्लाह का पैग़ाम सुनाया और फ़रमाया कि वह एक सच्चे रब की इबादत करे और बनी इसराइल को आज़ाद करे। मगर फिरौन ने उनकी बात को रद कर दिया और उन्हें जादूगर कहकर बेइज़्ज़ती की।
फिरौन ने अपने जादूगरों को बुलाया और मूसा (अलैहिस्सलाम) के साथ एक मुक़ाबला करवाया। जब जादूगरों ने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ फेंकी, तो वे साँपों की तरह दिखने लगीं। मगर जब मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अपना असा फेंका, तो वह एक अज़ीम साँप बन गया और जादूगरों की रस्सियों को निगल गया। यह देखकर जादूगरों ने अल्लाह पर ईमान ला लिया और कहा कि मूसा (अलैहिस्सलाम) का मोजिज़ा हक़ है। फिरौन ग़ुस्से से आगबबूला हो गया और उसने जादूगरों को सजा दी, लेकिन वे अपने ईमान पर क़ायम रहे।
बनी इसराइल की आज़ादी और समंदर का मोजिज़ा
फिरौन की सरकशी की वजह से अल्लाह तआला ने मिस्र पर कई आफ़तें नाज़िल कीं, जैसे टिड्डियाँ, मेंढक, और ख़ून की नदी। मगर फिरौन का दिल नरम नहीं हुआ। आख़िरकार, मूसा (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे बनी इसराइल को लेकर मिस्र से निकल जाएँ।
जब मूसा (अलैहिस्सलाम) और बनी इसराइल समंदर के किनारे पहुँचे, तो फिरौन अपनी फ़ौज के साथ उनका पीछा करता हुआ आ गया। बनी इसराइल ख़ौफ़ज़दा हो गए, मगर मूसा (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया, “ख़ौफ़ न करो, अल्लाह हमारे साथ है।” अल्लाह के हुक्म पर मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अपने असा को समंदर पर मारा, और समंदर दो हिस्सों में बट गया। बनी इसराइल सलामत तरीक़े से समंदर पार कर गए, मगर जब फिरौन और उसकी फ़ौज ने पीछा किया, तो समंदर फिर एक हो गया और फिरौन की फ़ौज ग़र्क़ हो गई।
मूसा (अलैहिस्सलाम) और तौरात
समंदर पार करने के बाद, मूसा (अलैहिस्सलाम) और बनी इसराइल सीनाई के रेगिस्तान में पहुँचे। वहाँ अल्लाह तआला ने मूसा (अलैहिस्सलाम) को तूर पहाड़ पर बुलाया और उन्हें तौरात अता फ़रमाई, जो बनी इसराइल के लिए हिदायत का ज़रिया थी। मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अपनी क़ौम को अल्लाह के अहकाम की तालीम दी, मगर कुछ लोग उनकी बात न माने और ग़लत राह पर चले गए।
मूसा (अलैहिस्सलाम) की तालीमात और विरासत
मूसा (अलैहिस्सलाम) की दास्तान हमें कई अहम सबक़ सिखाती है। उन्होंने हमें बताया कि अल्लाह पर भरोसा रखने से हर मुश्किल आसान हो जाती है। उनकी ज़िंदगी हिम्मत, सब्र, और हक़ के लिए जद्दोजहद की मिसाल है। फिरौन जैसे ताक़तवर हाकिम के सामने भी उन्होंने हार न मानी और अल्लाह का पैग़ाम बे-ख़ौफ़ पहुंचाया।
यह क़िस्सा हमें यह भी सिखाता है कि अल्लाह की मदद हमेशा उन लोगों के साथ होती है जो नेक राह पर चलते हैं। मूसा (अलैहिस्सलाम) की ज़िंदगी का हर पहलू, चाहे उनकी वालिदा का ईमान हो, उनकी हिम्मत हो, या फिरौन के सामने हक़ बोलने का जज़्बा हो, हमें रास्त दिखाता है।
ख़ातमा
नबी मूसा (अलैहिस्सलाम) की दास्तान इस्लामी तारीख़ का एक अहम हिस्सा है। उनकी ज़िंदगी हमें सिखाती है कि अल्लाह की राह पर चलने वालों को कभी मायूसी नहीं होती। यह क़िस्सा ईमान, सब्र, और हक़ के लिए क़ुर्बानी का पैग़ाम देता है। मूसा (अलैहिस्सलाम) की दास्तान हर उस शख़्स के लिए इबरत है जो अपनी ज़िंदगी में मुश्किलात का सामना कर रहा है। अल्लाह तआला हम सबको मूसा (अलैहिस्सलाम) की तरह सब्र और हिम्मत के साथ हक़ की राह पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।