Surah jinn in Hindi : सूरह जिन्न हिंदी में तर्जुमा के साथ।

Surah Jinn :- अस्सलाम अलैकूम प्यारे दोस्तों। दोस्तों आज हम कुरआन मजीद की एक बहुत ही खूबसूरत सूरह (Surah Jinn In Hindi) सूरह जिन्न हिन्दी में तर्जुमा के साथ लिखा गया है। दोस्तों सूरह जिन्न कुरआन मजीद की 72 नम्बर सूरह है। ये सूरह मक्की है। सूरह जिन्न में कुल 28 आयतें हैं। सूरह जिन्न में अल्लाह तआला ने बताया है। के कैसे जिन्नातों की एक गिरोह ने जब कुरआन सूना तो उन पर क्या असर पड़ा। जिन्नातों ने फिर वापस जाकर अपनी जाति में दुसरे जिन्नातों से क्या क्या बात कही। दोस्तों सूरह जिन्न उस वक्त नाजिल हुई जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम तायफ मे लोगों को इस्लाम की दावत दे रहे थे। और तायफ के लोग नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की दिन की दावत का खुल कर विरोध कर रहे थे। सूरह पढ़ें 

Surah jinn in Hindi : सूरह जिन्न हिंदी में तर्जुमा के साथ। 



Surah jinn in Hindi : सूरह जिन्न हिंदी में तर्जुमा के साथ।


Surah jinn in Hindi : सूरह जिन्न हिंदी में तर्जुमा के साथ। 



बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम


अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

(1)

कुल् ऊहि – य इलय् – य् अन्नहुस् – त – म – अ़ न – फ़रुम् मिनल् – जिन्नि फ़का़लू इन्ना समिअ्ना कुरआनन् अ़ – जबा 

(ऐ रसूल लोगों से) कह दो कि मेरे पास ‘वही’ आयी है कि जिनों की एक जमाअत ने (क़ुरान को) जी लगाकर सुना तो कहने लगे कि हमने एक अजीब क़ुरान सुना है। 

(2)

यह्दी इलर् – रुश्दि फ़ – आमन्ना बिही , व लन् – नुश्रि – क बिरब्बिना अ – हदा 

जो भलाई की राह दिखाता है तो हम उस पर ईमान ले आए और अब तो हम किसी को अपने परवरदिगार का शरीक न बनाएँगे। 

(3)

व अन्नहू तआ़ला जद्दु रब्बिना मत्त – ख़ – ज़ साहि – बतंव् – व ला व – लदा 

और ये कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बड़ी है उसने न (किसी को) बीवी बनाया और न बेटा बेटी। 

(4)

व अन्नहू का – न यकूलु सफ़ीहुना अ़लल्लाहि श – तता 

और ये कि हममें से बाज़ बेवकूफ।  ख़ुदा के बारे में हद से ज्यादा लग़ो बातें निकाला करते थे

(5)

व अन्ना ज़नन्ना अल् – लन् तकूलल् – इन्सु वल्जिन्नु अ़लल्लाहि कज़िबा 

और ये कि हमारा तो ख्याल था कि आदमी और जिन ख़ुदा की निस्बत झूठी बात नहीं बोल सकते। 

(6)

व अन्नहू का – न रिजालुम् मिनल् – इन्सि यअूजू – न बिरिजालिम् मिनल् – जिन्नि फ़ज़ादूहुम् र – हका़ 

और ये कि आदमियों में से कुछ लोग जिन्नात में से बाज़ लोगों की पनाह पकड़ा करते थे तो (इससे) उनकी सरकशी और बढ़ गयी। 

(7)

व अन्नहुम् ज़न्नू कमा ज़नन्तुम् अल्लंय् – यब् – अ़सल्लाहु अ – हदा 

और ये कि जैसा तुम्हारा ख्याल है वैसा उनका भी एतक़ाद था कि ख़ुदा हरगिज़ किसी को दोबारा नहीं ज़िन्दा करेगा। 

(8)

व अन्ना ल – मस् नस्समा – अ फ़ – वजद्नाहा मुलिअत् ह – रसन् शदीदंव् – व शुहुबा 

और ये कि हमने आसमान को टटोला तो उसको भी बहुत क़वी निगेहबानों और शोलो से भरा हुआ पाया। 

(9)

व अन्ना कुन्ना नक़अु़दु मिन्हा मकाअि – द लिस्सम्अि , फ़ – मंय्यस्तमिअिल् – आ – न यजिद् लहू शिहाबर् – र – सदा 

और ये कि पहले हम वहाँ बहुत से मक़ामात में (बातें) सुनने के लिए बैठा करते थे मगर अब कोई सुनना चाहे तो अपने लिए शोले तैयार पाएगा। 

(10)

व अन्ना ला नद्री अ – शर्रुन् उरी – द बिमन् फिल्अर्ज़ि अम् अरा – द बिहिम् रब्बुहुम् र – शदा 

और ये कि हम नहीं समझते कि उससे अहले ज़मीन के हक़ में बुराई मक़सूद है या उनके परवरदिगार ने उनकी भलाई का इरादा किया है ।

(11)

व अन्ना मिन्नस्सालिहू – न व मिन्ना दू – न ज़ालि – क कुन्ना तराइ – क़ कि़ – ददा 

और ये कि हममें से कुछ लोग तो नेकोकार हैं और कुछ लोग और तरह के हम लोगों के भी तो कई तरह के फिरकें हैं ।

(12)

व अन्ना ज़नन्ना अल् – लन् नुअ्जिज़ल्ला – ह फिल्अर्ज़ि व लन् नुअ्जि – ज़हू ह – रबा 

और ये कि हम समझते थे कि हम ज़मीन में (रह कर) ख़ुदा को हरगिज़ हरा नहीं सकते हैं और न भाग कर उसको आजिज़ कर सकते हैं ।

(13)

व अन्ना लम्मा समिअ्नल् – हुदा आमन्ना बिही , फ़ – मय्युअ्मिम् बिरब्बिही फ़ला यख़ाफु बख़्संव् – व ला र – हक़ा 

और ये कि जब हमने हिदायत (की किताब) सुनी तो उन पर ईमान लाए तो जो शख़्श अपने परवरदिगार पर ईमान लाएगा तो उसको न नुक़सान का ख़ौफ़ है और न ज़ुल्म का ।

(14)

व अन्ना मिन्नल् – मुस्लिमू – न व मिन्नल् – का़सितू – न , फ़ – मन् अस्ल – म फ़ – उलाइ – क त – हररौ र – शदा 

और ये कि हम में से कुछ लोग तो फ़रमाबरदार हैं और कुछ लोग नाफ़रमान तो जो लोग फ़रमाबरदार हैं तो वह सीधे रास्ते पर चलें और रहें ।

(15)

व अम्मल् – कासितू – न फ़कानू लि – जहन्न – म ह – तबा 

नाफरमान तो वह जहन्नुम के कुन्दे बने ।

(16)

व अल् – लविस्तका़मू अ़लत्तरी – क़ति ल – अस्कै़नाहुम् माअन् ग़ – दका 

और (ऐ रसूल तुम कह दो) कि अगर ये लोग सीधी राह पर क़ायम रहते तो हम ज़रूर उनको अलग़ारों पानी से सेराब करते ।

(17)

लिनफ्ति – नहुम् फ़ीहि , व मंय्युअ्रिज् अ़न् जिक्रि रब्बिही यस्लुक्हु अ़जा़बन् स – अ़दा 

ताकि उससे उनकी आज़माईश करें और जो शख़्श अपने परवरदिगार की याद से मुँह मोड़ेगा तो वह उसको सख्त अज़ाब में झोंक देगा ।

(18)

व अन्नल् – मसाजि – द लिल्लाहि फ़ला तद्अू मअ़ल्लाहि अ – हदा 

और ये कि मस्जिदें ख़ास ख़ुदा की हैं तो लोगों ख़ुदा के साथ किसी की इबादन न करना ।

(19)

व अन्नहू लम्मा का – म अ़ब्दुल्लाहि यद्अूहु कादू यकूनू – न अ़लैहि लि – बदा 

और ये कि जब उसका बन्दा (मोहम्मद) उसकी इबादत को खड़ा होता है तो लोग उसके गिर्द हुजूम करके गिर पड़ते हैं।

***

(20)

कुल इन्नमा अद्अू रब्बी व ला उश्रिकु बिही अ – हदा 

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो अपने परवरदिगार की इबादत करता हूँ और उसका किसी को शरीक नहीं बनाता।

(21)

कुल् इन्नी ला अम्लिकु लकुम् ज़ररंव् – व ला र – शदा 

(ये भी) कह दो कि मैं तुम्हारे हक़ में न बुराई ही का एख्तेयार रखता हूँ और न भलाई का ।

(22)

कुल इन्नी लंय्युजी – रनी मिनल्लाहि अ – हदुंव् – व लन् अजि – द मिन् दूनिही मुल्त – हदा 

(ये भी) कह दो कि मुझे ख़ुदा (के अज़ाब) से कोई भी पनाह नहीं दे सकता और न मैं उसके सिवा कहीं पनाह की जगह देखता हूँ ।

(23)

इल्ला बलाग़म् मिनल्लाहि व रिसालातिही , व मंय्यअ्सिल्ला – ह व रसूलहू फ़ – इन् – न लहू ना – र जहन्न – म ख़ालिदी – न फ़ीहा अ – बदा 

ख़ुदा की तरफ से (एहकाम के) पहुँचा देने और उसके पैग़ामों के सिवा (कुछ नहीं कर सकता) और जिसने ख़ुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की तो उसके लिए यक़ीनन जहन्नुम की आग है जिसमें वह हमेशा और अबादुल आबाद तक रहेगा ।

 (24)

हत्ता इज़ा रऔ मा यू – अ़दू – न फ़ – सयअ्लमू – न मन् अज़अ़फु नासिरंव् – व अक़ल्लु अ़ – ददा

यहाँ तक कि जब ये लोग उन चीज़ों को देख लेंगे जिनका उनसे वायदा किया जाता है तो उनको मालूम हो जाएगा कि किसके मददगार कमज़ोर और किसका शुमार कम है ।

(25)

कुल् इन् अद्री अ – क़रीबुम् – मा तू – अ़दू – न अम् यज्अ़लु लहू रब्बी अ – मदा 

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस दिन का तुमसे वायदा किया जाता है क़रीब है या मेरे परवरदिगार ने उसकी मुद्दत दराज़ कर दी है ।

(26)

आ़लिमुल् – गै़बि फ़ला युज्हिरु अ़ला गै़बिही अ – हदा 

(वही) ग़ैबवॉ है और अपनी ग़ैब की बाते किसी पर ज़ाहिर नहीं करता ।

(27)

इल्ला मनिर्तज़ा मिर्रसूलिन् फ़ – इन्नहू यस्लुकु मिम् – बैनि यदैहि व मिन् ख़ल्फ़िही र – सदा 

मगर जिस पैग़म्बर को पसन्द फरमाए तो उसके आगे और पीछे निगेहबान फरिश्ते मुक़र्रर कर देता है ।

(28)

लियअ्ल – म अन् क़द् अब्लगू रिसालाति रब्बिहिम् व अहा – त बिमा लदैहिम् व अह्सा कुल् – ल शैइन् अ़ – ददा 

ताकि देख ले कि उन्होंने अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचा दिए और (यूँ तो) जो कुछ उनके पास है वह सब पर हावी है और उसने तो एक एक चीज़ गिन रखी हैं ।।

***


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Conclusion 


दोस्तों सूरह जिन्न हिन्दी में तर्जुमा के साथ हमने लिखा है। हमें उम्मीद है आपकों कुरआन मजीद की ये सूरत "सूरह अल जिन्न" आपकों पढ़ने में आसानी हुई होगी और तर्जुमा भी अच्छे से समझ आया होगा। प्यारे दोस्तों अगर आप को ये पोस्ट अच्छा लगा हो तो प्लीज़ आप इसे और दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर जरुर करे। और कमेंट में माशा अल्लाह जरूर लिखें। अल्लाह तआला हमें और आपको सीधे रास्ते पर चलने की तौफीक अता फरमाए। और जितने भी मुसलमान इस दुनिया से जा चुके हैं। अल्लाह तआला उनकी मगफिरत फरमाए और जन्नत में आला से आला मकाम आता फरमाए। आमीन।








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2 Comments
  • Anonymous
    Anonymous January 27, 2024 at 2:11 AM

    आपकी हर पोस्ट माशा अल्लाह बहुत खूबसूरत है। कुछ और इस्लामिक वाकिया वेबसाइट में एड किजिए।

  • Anonymous
    Anonymous June 27, 2024 at 12:15 PM

    Mashallah

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