Hazrat Lut A.s. Ka Waqia in Hindi | हज़रत लूत (अ.स.) का वाक़िया: क़ुरआन की रोशनी में एक सबक़-आमोज़ कहानी

क़ुरआन मजीद में बयान की गई हज़रत लूत (अ.स.) की कहानी उन पाक और सबक़-आमोज़ क़िस्सों में शुमार होती है, जो इंसानियत को अख़लाक़, अल्लाह की बंदगी और गुनाहों के अंजाम से आगाह करती है। यह वाक़िया हज़रत इब्राहिम (अ.स.) के ज़माने का है और इसका ज़िक्र क़ुरआन की कई सूरतों जैसे सूरह हूद, सूरह अल-अराफ़, सूरह अश-शुारा, और सूरह अन-नम्ल में मिलता है। अल्लाह ने हज़रत लूत (अ.स.) को सदूम और अमूरा (सोडम और गोमोरा) के बाशिंदों की तरफ़ पैग़म्बर बनाकर भेजा था। यह क़ौम बद-अख़लाक़ी और गुनाहों की तारीकी में ग़र्क़ थी, और हज़रत लूत (अ.स.) ने उन्हें हिदायत का रास्ता दिखाने की भरपूर कोशिश की। यह लेख "हज़रत लूत का वाक़िया", "लूत नबी की कहानी", "सदूम की क़ौम का अज़ाब" जैसे अहम उनवानों को सामने रखकर तैयार किया गया है। जिसमें क़ुरआनी आयात, तारीखी पस-मंज़र, अख़लाक़ी सबक़ और मौजूदा दौर के लिए इसकी अहमियत पर रौशनी डाली जाएगी।

Hazrat Lut A.s. Ka Waqia in Hindi | हज़रत लूत (अ.स.) का वाक़िया


परिचय: हज़रत लूत (अ.स.) और उनकी पैग़म्बरी का तार्रूफ।


क़ुरआन करीम में अंबिया-ए-किराम के वाक़िआत इंसानों की रहनुमाई और नसीहत के लिए हैं। हज़रत लूत (अ.स.) भी उन्हीं पैग़म्बरों में से एक हैं, जिन्हें अल्लाह तआला ने एक ऐसी क़ौम की इस्लाह के लिए भेजा जो अख़लाक़ी गिरावट और बदकारी की इंतेहा पर थी। क़ुरआन में हज़रत लूत (अ.स.) का ज़िक्र कई मक़ामात पर आया है। उनकी कहानी हमें यह सबक़ देती है कि गुनाहों का रास्ता हमेशा तबाही की तरफ़ ले जाता है, जबकि अल्लाह की इताअत में ही निजात है।

हज़रत लूत (अ.स.), हज़रत इब्राहिम (अ.स.) के भतीजे थे। रिवायत के मुताबिक़, आपका नाम लूत बिन हारान था, और आप हज़रत इब्राहिम (अ.स.) के भाई हारान के बेटे थे। अल्लाह ने आपको सदूम की क़ौम की तरफ़ भेजा, जो मौजूदा जॉर्डन और फ़िलिस्तीन के इलाक़े में आबाद थी। यह क़ौम अपनी बदकारियों, ख़ास तौर पर मर्दों का मर्दों से जिंसी ताल्लुक़ क़ायम करने जैसे क़बीह फेल, की वजह से जानी जाती थी। हज़रत लूत (अ.स.) ने अपनी क़ौम को तौहीद (एक अल्लाह की इबादत) और पाकीज़ा ज़िंदगी की तरफ़ बुलाया, मगर क़ौम ने उनकी दावत को रद्द कर दिया।

अल्लाह क़ुरआन में इरशाद फ़रमाता है: "और हमने लूत को भेजा, जब उसने अपनी क़ौम से कहा: 'क्या तुम ऐसी बेहयाई का काम करते हो जो तुम से पहले दुनिया में किसी ने नहीं किया?'" (सूरह अल-अराफ़, आयत 80)। 

यह आयत उस क़ौम की गुमराही को वाज़ेह करती है और हज़रत लूत (अ.स.) के पैग़ाम की इब्तिदा को बयान करती है।

सदूम की क़ौम: तारीखी और समाजी पस-मंज़र

सदूम और अमूरा (सोडम और गोमोरा) के शहर, आज के दौर के जॉर्डन और फ़िलिस्तीन के इलाक़े में बहर-ए-मुरदार (Dead Sea) के क़रीब वाक़े थे। क़ुरआन में इन बस्तियों को "मुंतक़िफ़ात" यानी 'उलट दी गई बस्तियाँ' कहा गया है, क्यूँकि अल्लाह ने उनके गुनाहों की सज़ा में उन्हें तबाह व बरबाद कर दिया था। यह क़ौम माली तौर पर ख़ुशहाल थी; उनके पास ज़रख़ेज़ ज़मीनें, तिजारती रास्ते और बेशुमार वसाइल थे। लेकिन इस दुनियावी ख़ुशहाली ने उन्हें अल्लाह का नाफ़रमान और मुतकब्बिर बना दिया था।

उनका सबसे बड़ा और घिनौना गुनाह मर्दों का मर्दों से जिंसी ख़्वाहिश पूरी करना था, एक ऐसा फेल जो उनसे पहले दुनिया में किसी क़ौम ने नहीं किया था। क़ुरआन इस गुनाह की शदीद मज़म्मत करता है: "और लूत को (याद करो) जब उसने अपनी क़ौम से कहा: 'क्या तुम औरतों को छोड़कर मर्दों के पास अपनी शहवत पूरी करने जाते हो? हक़ीक़त यह है कि तुम लोग बड़ी जहालत की बातें करते हो।'" (सूरह अश-शुारा, आयत 165-166)।

इस गुनाह के अलावा, वो राह चलते मुसाफ़िरों को लूटते, अपनी महफ़िलों में खुले आम बेहयाई करते और अल्लाह की अता की हुई नेमतों की ना-शुक्री करते थे। सदूम की क़ौम का समाज आज के उन मुआशरों की झलक पेश करता है जहाँ अख़लाक़ और रूहानियत की कमी लोगों को गुनाहों के दलदल में धकेल देती है। उनकी कहानी एक वार्निंग है कि अख़लाक़ के बग़ैर दुनियावी तरक़्क़ी सिर्फ़ हलाकत का सबब बनती है।

हज़रत लूत (अ.स.) की हयात और मिशन-ए-नबुव्वत


हज़रत लूत (अ.स.) की परवरिश हज़रत इब्राहिम (अ.स.) के घराने में हुई। आप एक नेक, सब्र करने वाले और अल्लाह पर कामिल यक़ीन रखने वाले इंसान थे। क़ुरआन में आपको हज़रत इब्राहिम (अ.स.) का साथी क़रार दिया गया है, जो उनके हमराह बाबिल (मौजूदा इराक़) से हिजरत करके कनान (मौजूदा फ़िलिस्तीन) तशरीफ़ लाए थे। अल्लाह ने आपको सदूम के बाशिंदों की हिदायत के लिए नबी मुक़र्रर फ़रमाया।

आपकी ज़िंदगी सादगी और परहेज़गारी का नमूना थी। आप अपनी क़ौम के दरमियान ही रहते थे और उनकी बुराइयों को देखकर बेहद रंजीदा होते थे। क़ुरआन में आपकी नबुव्वत का ज़िक्र इन अल्फ़ाज़ में है: "और हमने लूत को हुकूमत और इल्म अता किया और उसे उस बस्ती से निजात दी जिसके रहने वाले गंदे काम करते थे। बेशक वह बहुत बुरे और नाफ़रमान लोग थे।" (सूरह अल-अंबिया, आयत 74)। 

हज़रत लूत (अ.स.) ने अपनी क़ौम को मुसलसल समझाया कि वे गुनाहों से बाज़ आ जाएँ, एक अल्लाह की इबादत करें और पाकीज़ा ज़िंदगी गुज़ारें। लेकिन उनकी क़ौम ने न सिर्फ़ उनकी बातों को अनसुना किया बल्कि उनका मज़ाक़ उड़ाया और उन्हें डराया-धमकाया।

हज़रत लूत (अ.स.) का पैग़ाम और क़ौम का जवाब


हज़रत लूत (अ.स.) के पैग़ाम का मरकज़ी नुक़्ता तौहीद-ए-इलाही और अख़लाक़ी पाकीज़गी था। उन्होंने अपनी क़ौम पर वाज़ेह किया कि मर्दों का मर्दों से ताल्लुक़ और दीगर बेहयाई के काम अल्लाह के नज़दीक सख़्त नापसंदीदा हैं। उनका सवाल था: "क्या तुम मर्दों के पास जाते हो और डाके डालते हो और अपनी महफ़िलों में नापसंदीदा काम करते हो?" (सूरह अल-अनकबूत, आयत 29)।

हज़रत लूत (अ.स.) के इस सीधे सवाल पर, उनकी क़ौम का जवाब हठधर्मी और बग़ावत पर मबनी था। उन्होंने कहा: "लूत को और उसके घर वालों को अपनी बस्ती से निकाल दो, ये लोग बड़े पाक-साफ़ बनना चाहते हैं।" (सूरह अन-नम्ल, आयत 56)।

उनकी सरकशी इस हद तक बढ़ गई थी कि उन्होंने हज़रत लूत (अ.स.) को वाज़ेह धमकी दी कि अगर उन्होंने अपनी तब्लीग़ का सिलसिला बंद न किया तो उन्हें संगीन नताइज भुगतने होंगे।

हज़रत लूत (अ.स.) ने बड़े सब्र के साथ अपनी क़ौम को समझाना जारी रखा और अल्लाह से उनकी हिदायत के लिए दुआ करते रहे। क़ुरआन उनकी बेबसी और अल्लाह पर तवक्कुल को इन अल्फ़ाज़ में बयान करता है: "उसने कहा: 'काश! मेरे पास तुम्हारे मुक़ाबले में कोई क़ुव्वत होती या मैं किसी मज़बूत सहारे की पनाह ले सकता।'" (सूरह हूद, आयत 80)।

यह आयत उनकी आजिज़ी और अल्लाह की ज़ात पर उनके कामिल भरोसे को ज़ाहिर करती है।

फ़रिश्तों की आमद और हक़ की निशानदेही

जब हज़रत लूत (अ.स.) की क़ौम अपनी गुमराही पर अड़ी रही और उनकी नसीहतों को मुस्तकिल रद्द करती रही, तो अल्लाह ने अज़ाब के फ़रिश्तों को रवाना किया। ये फ़रिश्ते पहले हज़रत इब्राहिम (अ.स.) के पास बशारत लेकर गए और फिर सदूम पहुँचे। ये फ़रिश्ते, जिनमें हज़रत जिब्रईल (अ.स.) भी शामिल थे, ख़ूबसूरत नौजवान इंसानों की शक्ल में आए थे। क़ुरआन इस मंज़र को बयान करता है: "और जब हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) लूत के पास पहुँचे, तो वह उनकी वजह से ग़मगीन हुआ और दिल ही दिल में घबराने लगा।" (सूरह हूद, आयत 77)।

हज़रत लूत (अ.स.) ने उन फ़रिश्तों को मेहमान समझकर अपने घर में पनाह दी, लेकिन उनकी बदकार क़ौम को ख़बर हो गई। उन्होंने हज़रत लूत (अ.स.) के घर का मुहासरा कर लिया और मेहमानों को उनके हवाले करने का मुतालबा करने लगे। हज़रत लूत (अ.स.) ने अपनी क़ौम को बहुत समझाया और उन्हें अपनी बेटियों (यानी क़ौम की औरतों) से निकाह करके अपनी ख़्वाहिश पूरी करने की पेशकश की, मगर उस क़ौम ने उनकी नेक सलाह को ठुकरा दिया। तब फ़रिश्तों ने हज़रत लूत (अ.स.) पर अपनी हक़ीक़त ज़ाहिर की और बताया कि वो अल्लाह के भेजे हुए हैं और इस क़ौम पर अज़ाब नाज़िल करने आए हैं। उन्होंने हज़रत लूत (अ.स.) को हुक्म दिया कि वो रात के आख़िरी पहर में अपने अहले-खाना को लेकर इस शहर से निकल जाएँ।

सदूम की क़ौम पर अज़ाब-ए-इलाही और उनकी तबाही


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सदूम की क़ौम पर एक निहायत ही ख़ौफ़नाक अज़ाब नाज़िल फ़रमाया। क़ुरआन मजीद इस अज़ाब की तफ़सील बयान करता है: "पस जब हमारा हुक्म आ पहुँचा, तो हमने उस (बस्ती) के ऊपर के हिस्से को नीचे कर दिया और उन पर पक्की मिट्टी के पत्थर बरसाए जो तह-ब-तह थे।" (सूरह हूद, आयत 82)।

यह अज़ाब इतना शदीद था कि पूरी की पूरी बस्ती को उलट दिया गया। बाज़ तफ़सीरों में आता है कि यह एक ज़लज़ले और पत्थरों की बारिश का मिला-जुला अज़ाब था, जिसने सदूम और उसके इर्द-गिर्द की बस्तियों को नेस्त-ओ-नाबूद कर दिया। इस अज़ाब से सिर्फ़ हज़रत लूत (अ.स.) और उनके घर के वो अफ़राद बचे जो उन पर ईमान लाए थे, सिवाए उनकी बीवी के। वो अपनी क़ौम की तरफ़दार थी और उन्हीं के साथ अज़ाब में हलाक हो गई। क़ुरआन में इस बारे में वाज़ेह तौर पर फ़रमाया गया: "सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जाने वालों में थी।" (सूरह अश-शुारा, आयत 171)। यह आयत हमें बताती है कि निजात का दारोमदार ईमान पर है, दुनियावी रिश्तों पर नहीं।


हज़रत लूत (अ.स.) के वाक़िए से हासिल होने वाले सबक़


हज़रत लूत (अ.स.) के इस वाक़िए में हमारे लिए कई अहम अख़लाक़ी और रूहानी अस्बाक़ पोशीदा हैं:

  1. अख़लाक़ की अहमियत: जिंसी बेराह-रवी और दीगर बेहयाई के काम अल्लाह की नज़र में शदीद नापसंदीदा हैं। क़ुरआन इन कामों से सख़्ती से मना करता है।
  2. अल्लाह की इबादत: तौहीद पर क़ायम रहना और सिर्फ़ एक अल्लाह की इबादत करना हर मुसलमान का पहला फ़र्ज़ है।
  3. सब्र और दावत: हज़रत लूत (अ.स.) ने इंतहाई मुश्किल हालात में भी सब्र का दामन नहीं छोड़ा और दावत का काम जारी रखा। यह आज दीन की तब्लीग़ करने वालों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है।
  4. गुनाहों का अंजाम: अल्लाह की नाफ़रमानी और गुनाहों पर इसरार आख़िरकार तबाही और बर्बादी का सबब बनता है।
  5. अल्लाह पर तवक्कुल: हज़रत लूत (अ.स.) ने हर मुश्किल घड़ी में सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की ज़ात पर भरोसा किया।

ये तमाम सबक़ क़ुरआन की आयात से साबित हैं और हमें अपनी ज़िंदगी को सही रास्ते पर चलाने की तर्गीब देते हैं।

मौजूदा दौर में इस वाक़िए की अहमियत

हज़रत लूत (अ.स.) की कहानी मौजूदा दौर के लिए भी उतनी ही मौज़ूँ और अहम है जितनी पहले थी। आज दुनिया के कई मुआशरों में बेहयाई और مادیت پرستی (मादियत-परस्ती) का ग़लबा है। जिंसी गुमराहियों को कुछ जगहों पर क़ानूनी तहफ़्फ़ुज़ दिया जा रहा है, जो क़ुरआन की तालीमात के सख़्त ख़िलाफ़ है। यह वाक़िया हमें याद दिलाता है कि अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदों को पार करने का अंजाम हलाकत के सिवा कुछ नहीं। इसके अलावा, आज दुनिया को दरपेश कुदरती आफ़ात, समाजी बेचैनी और अख़लाक़ी ज़वाल इस बात की वार्निंग हैं कि हमें अपनी ज़िंदगी के तौर-तरीक़ों पर नज़र-ए-सानी करने की ज़रूरत है। हज़रत लूत (अ.स.) का सब्र और उनकी दावत का तरीक़ा हमें सिखाता है कि हालात कितने ही नामुवाफ़िक़ क्यों न हों, हमें हमेशा हक़ का साथ देना चाहिए। अल्लाह तआला क़ुरआन में फ़रमाता है: "और ये मिसालें हम लोगों के लिए बयान करते हैं ताकि वे ग़ौर-ओ-फ़िक्र करें।" (सूरह अल-हश्र, आयत 21)। यह आयत हमें तारीख़ से सबक़ सीखने और अपनी ज़िंदगी को अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ संवारने की दावत देती है।

नतीजा: एक हमेशा बाक़ी रहने वाला सबक़

हज़रत लूत (अ.स.) का वाक़िया हमें यह बुनियादी सबक़ सिखाता है कि कामयाबी और निजात सिर्फ़ अल्लाह के रास्ते पर चलने और अख़लाक़ी क़दरों को अपनाने में है। उनकी क़ौम पर आने वाला अज़ाब एक खुली वार्निंग है कि गुनाह और सरकशी का अंजाम बर्बादी और हलाकत है। अगर आप इस क़िस्से के बारे में मज़ीद जानना चाहते हैं, तो क़ुरआन का मुताला करें और मुस्तनद तफ़्सीर पढ़ें। अल्लाह हम सबको सीधी राह पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।
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