Islamic Waqia: एक माँ की दुआ और अल्लाह की रहमत
अल्लाह की रहमत और एक माँ की दुआ – एक सच्चा इस्लामी वाक़िआ
"जब माँ की दुआ और अल्लाह की रहमत मिल जाए, तो किस्मत बदलते देर नहीं लगती।"
इस्लाम केवल एक मज़हब ही नहीं, बल्कि एक ज़िन्दगी जीने का तरीका है, जहाँ इंसान को हर हाल में अल्लाह पर भरोसा रखने और माँ-बाप की इज्ज़त करने का हुक्म दिया गया है। यह कहानी एक ऐसे नौजवान की है जो बर्बादी के कगार पर था, लेकिन माँ की एक सच्ची दुआ ने उसे दुनिया और आखिरत दोनों में कामयाबी दिला दी।
एक बिगड़ता हुआ नौजवान
यह वाक़िआ मिस्र (Egypt) के काहिरा शहर का है। एक नौजवान जिसका नाम था ज़ैद, एक अच्छे घर से ताल्लुक रखता था। उसके वालिद एक सरकारी अफसर थे और माँ एक नेक परहेज़गार औरत थीं। बचपन में ज़ैद बहुत होशियार और सीधा-सादा था, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, दुनिया की चकाचौंध और गलत संगत में पड़ गया।
ज़ैद अब नमाज़ छोड़ने लगा था, झूठ बोलने, चोरी करने और गैर-इस्लामी महफिलों में जाने लगा था। माँ हर दिन रोती, उसे समझाती, कुरआन की आयतें सुनातीं, लेकिन ज़ैद पर कोई असर नहीं होता। जब भी माँ कुछ कहती, वह गुस्से से जवाब देता – “अम्मी, मैं अब बच्चा नहीं हूँ। मुझे मत सिखाओ क्या सही है, क्या गलत।”
माँ की आंखों के आंसू और अल्लाह की तरफ रज़ा
हर रात माँ तहज्जुद की नमाज़ में उठतीं, रोतीं और दुआ करतीं –
“या रब! मेरे बेटे को हिदायत दे दे। उसका दिल साफ कर दे। उसे अपने पास बुला ले। मुझे उसके बगैर जिंदगी मंज़ूर है, लेकिन मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा जहन्नुम का रास्ता चुने।”
यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा। ज़ैद की बुराईयाँ बढ़ती जा रही थीं – अब वह नशे और झूठे कारोबार में भी शामिल हो गया था। उसकी हालत इतनी खराब हो गई कि एक दिन पुलिस ने उसे एक गैरकानूनी धंधे में पकड़ लिया।
जेल की चारदीवारी और रोशनी की एक किरण
जब ज़ैद को जेल में डाला गया, तो पहली बार उसे वक्त मिला अकेले में सोचने का। वहाँ एक बूढ़ा क़ैदी था जो पाँच वक्त की नमाज़ पढ़ता, कुरआन की तिलावत करता और सबको हदीसें सुनाता। ज़ैद को पहले वो अजीब लगता, लेकिन धीरे-धीरे उसकी बातों में उसे सुकून मिलने लगा।
एक दिन उस बूढ़े ने ज़ैद से पूछा –
"क्या तू अपनी माँ को याद करता है?"
ज़ैद की आंखें भर आईं – "हाँ, वो बहुत रोती थीं, लेकिन मैंने कभी नहीं सुना। शायद अब बहुत देर हो गई है।"
उस बुज़ुर्ग ने कहा – "बिलकुल नहीं। जब तक तेरी माँ जिंदा है और तेरा दिल ज़िंदा है, अल्लाह की रहमत तेरे लिए खुली है।"
कुरआन की आयत ने बदल दी जिंदगी
एक रात, ज़ैद को बूढ़े क़ैदी ने सूरह अज़-ज़ुमर की यह आयत सुनाई:
"ऐ मेरे बंदों, जिन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया है, अल्लाह की रहमत से मायूस मत हो। बेशक अल्लाह सारे गुनाह माफ़ करता है।"
(Qur'an 39:53)
इस आयत ने ज़ैद के दिल को हिला दिया। वह फूट-फूट कर रोने लगा। उसी रात उसने पहली बार तहे-दिल से तौबा की। जेल में ही उसने पाँच वक्त की नमाज़ शुरू कर दी, कुरआन पढ़ना शुरू किया और रोज़ा रखने लगा। उसकी सोच, उसकी नज़र, उसका रवैया – सब कुछ बदल गया।
वापसी और माँ की झप्पी
छः महीने बाद ज़ैद को कोर्ट ने छोड़ दिया, क्योंकि उस पर लगाए गए आरोप सिद्ध नहीं हुए। जब वह घर पहुँचा, तो माँ दरवाज़े पर खड़ी थीं। उन्हें देखकर ज़ैद माँ की गोद में गिर पड़ा और कहा:
"अम्मी, आपकी दुआ ने मुझे बचा लिया। मैं अब बदल चुका हूँ।"
माँ की आंखों में खुशी के आँसू थे। उन्होंने आसमान की तरफ देखा और कहा:
"या रब, तूने मेरी सुनी। तू ही सबसे बड़ा है।"
इस वाक़िआ से हमें क्या सीख मिलती है?
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माँ की दुआ में ताक़त होती है:
जब एक माँ दिल से दुआ करती है, तो आसमान का दरवाज़ा खुल जाता है। -
कभी भी अल्लाह की रहमत से मायूस मत हो:
चाहे कितना ही बड़ा गुनाह क्यों न हो, अल्लाह माफ़ करने वाला है। -
बुराई से वापसी का रास्ता खुला है:
इंसान जब चाहे, सच्चे दिल से तौबा करके राहे हक पर लौट सकता है। -
अच्छी संगत से बदलाव आता है:
नेक लोगों की सोहबत (संगत) से दिल बदलता है, सोच बदलती है।
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📌 हर वाक़िआ सिर्फ़ कहानी नहीं – एक सबक है, एक दुआ है, एक रास्ता है।