Islamic Waqia: एक चोर की तौबा: अल्लाह की रहमत की अनोखी मिसाल
एक सच्चा तौबा करने वाला चोर – अल्लाह की हिदायत की अनोखी कहानी
"जो सच्चे दिल से तौबा करता है, अल्लाह उसके गुनाहों को भी नेकी में बदल देता है।" – (कुरआन 25:70)
प्रस्तावना
इस्लाम हमें न सिर्फ़ नेकी की राह पर चलना सिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि अगर कोई गुनाहगार सच्चे दिल से तौबा कर ले, तो अल्लाह उसकी सारी गलतियों को माफ़ कर देता है। इस कहानी में हम आपको एक ऐसे चोर की दास्तान बताएंगे, जिसने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ गुनाह किए थे — लेकिन एक रात ऐसा वाक़िआ हुआ कि उसकी पूरी क़िस्मत ही बदल गई।
बचपन से तन्हा और बेजान
यह वाक़िआ बग़दाद (Baghdad) के एक छोटे मोहल्ले का है। वहाँ एक नौजवान रहता था, जिसका नाम था असद। असद का बचपन बहुत तंगहाली और दुखों में गुज़रा था। माँ-बाप का साया बचपन में ही उठ गया था। किसी ने उसे सहारा नहीं दिया। बेरोज़गारी, भूख और तन्हाई ने उसे चोर बना दिया।
शुरू-शुरू में उसने पेट भरने के लिए छोटी-मोटी चोरी की, लेकिन धीरे-धीरे उसकी आदत बन गई। अब वह एक पेशेवर चोर बन चुका था। दिन में सोता और रात को चोरी करता। मस्जिद की अज़ान भी उसके कानों में शोर लगती थी। कभी नमाज़ नहीं पढ़ी, कभी कुरआन नहीं खोला।
वह रात जिसने ज़िंदगी बदल दी
एक सर्द रात असद ने तय किया कि वह शहर के अमीर इलाके में चोरी करने जाएगा। वह एक बड़े आलीशान मकान में घुसा, जहाँ अंदर कोई नहीं था। घर में सब सो रहे थे। वह चुपचाप अलमारी से जेवर और पैसे निकाल रहा था कि तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी।
"असद, क्या तू अब भी नहीं रुकेगा?"
वह घबरा गया। चारों ओर देखा, कोई नहीं था।
फिर से आवाज़ आई –
"असद, अल्लाह तुझे देख रहा है। क्या अब भी तुझे शर्म नहीं आती?"
उसके हाथ से जेवर गिर पड़े। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वह डर के मारे दौड़ता हुआ बाहर निकला और सीधा एक सुनसान मस्जिद की तरफ भाग गया।
अल्लाह के आगे तौबा
असद मस्जिद के अंधेरे कोने में जाकर बैठ गया। वहाँ एक बुज़ुर्ग इमाम कुरआन की तिलावत कर रहे थे। उन्होंने असद को देखा और धीरे से पूछा –
"बेटा, क्यों रो रहा है?"
असद फूट-फूट कर रो पड़ा और बोला –
"मैं एक चोर हूँ... मैं बहुत गुनाह कर चुका हूँ... मुझे माफ कर दीजिए..."
बुज़ुर्ग ने उसे गले से लगा लिया और कहा –
"बेटा, तूने इंसानों से नहीं, अल्लाह से माफी मांगनी है। उसकी रहमत बहुत बड़ी है। वो तौबा करने वालों से मोहब्बत करता है।"
उसी रात, असद ने पहली बार सच्चे दिल से तौबा की। उसने पांच वक्त की नमाज़ पढ़ने का वादा किया, चोरी छोड़ने की कसम खाई और नेक रास्ते पर चलने का इरादा किया।
नयी शुरुआत – इल्म और इबादत का रास्ता
असद ने सुबह होते ही पास के मदरसे में जाकर कहा –
"मैं पढ़ना चाहता हूँ, सीखना चाहता हूँ। मुझे सही रास्ता दिखाइए।"
उस्ताद हैरान रह गए, लेकिन उसकी आंखों में सच्चाई देख कर उसे दाखिला दे दिया। अब असद दिन-रात मेहनत करता, कुरआन पढ़ता, हदीस सीखता और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करता।
धीरे-धीरे उसकी इज्ज़त बढ़ने लगी। लोग अब उसे “असद भाई” कहने लगे थे, जो नेक सलाह देता, लोगों की मदद करता और मस्जिद में हर वक्त नमाज़ के लिए सबसे पहले आता।
एक मां की दुआ – जो देर से पूरी हुई
एक दिन एक बूढ़ी औरत मस्जिद आई। वह बहुत बीमार थी और उसने इमाम से कहा –
"मेरा बेटा असद बचपन में बिछड़ गया था। वो गुमराह हो गया होगा। क्या आप मेरे लिए दुआ करेंगे कि अल्लाह उसे सही राह दिखाए?"
इमाम मुस्कराए और बोले –
"अम्मी, आपका बेटा तो अब हमारे साथ है – यही असद है।"
जब वह औरत असद को देखती है, तो दोनों रोते हुए एक-दूसरे से लिपट जाते हैं। असद की आंखों से आंसू बहते हैं –
"अम्मी, आपकी दुआ ने मुझे बचा लिया।"
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
1. तौबा का दरवाज़ा हमेशा खुला है
कोई भी इंसान कितना भी बड़ा गुनाहगार हो, अगर वह दिल से तौबा करे, तो अल्लाह उसे माफ़ कर देता है। कुरआन कहता है:
"बेशक अल्लाह तौबा करने वालों को पसंद करता है।" – (सूरह अल-बक़रह 2:222)
2. बुराई छोड़ना कभी देर नहीं होती
असद ने अपनी ज़िंदगी के अंधेरे दौर में रोशनी पाई, क्योंकि उसने बदलने का फैसला किया।
3. माँ-बाप की दुआ कभी ज़ाया नहीं जाती
उसकी माँ ने वर्षों पहले जो दुआ की थी, वह अल्लाह ने कबूल कर ली – समय पर।
4. इल्म और इबादत इंसान को ऊँचा बनाते हैं
जब असद ने इल्म और इबादत को अपनाया, समाज में उसकी इज्ज़त खुद-ब-खुद बढ़ गई।
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🕋 हर गुनाह से वापसी का दरवाज़ा खुला है – बस एक तौबा की ज़रूरत है।