Hazrat Imam Mehdi Ka Zahoor | हज़रत इमाम मेहदी का ज़हूर: इस्लामी अक़ीदे की रोशनी में

इमाम मेहदी का ज़हूर: इस्लामी अक़ीदे की रोशनी में

इमाम मेहदी का ज़हूर इस्लाम की एक अहम हक़ीक़त है जो मुसलमानों के दिलों में उम्मीद की किरण जगाती है। यह वह वक़्त होगा जब दुनिया ज़ुल्म और जौर से भर चुकी होगी, और अल्लाह का यह बंदा ज़ाहिर होकर अद्ल और इंसाफ़ से दुनिया को भर देगा। इस लेख में हम इमाम मेहदी के ज़हूर पर तफ़सीली बहस करेंगे, जिसमें उनके बारे में इस्लामी रिवायतें, निशानियाँ, शिया और सुन्नी मज़हब के फ़र्क़, और मौजूदा दौर की हालत शामिल हैं। अगर आप "इमाम मेहदी का ज़हूर" की तलाश में हैं, तो यह लेख आपके सारे सवालों का जवाब देगा। हम उर्दू अल्फ़ाज़ जैसे ज़हूर, निशानियाँ, हदीस, और जवाब का इस्तेमाल करेंगे ताकि बहस ज़्यादा क़रीब और असली लगे।

Hazrat Imam Mehdi Ka Zahoor | हज़रत इमाम मेहदी का ज़हूर: इस्लामी अक़ीदे की रोशनी में


इमाम मेहदी कौन हैं? उनकी ज़िंदगी का मुख़्तसर तआरुफ़

इमाम मेहदी (अलैहिस्सलाम) को इस्लाम में वह मसीहा कहा जाता है जो आख़िरी ज़माने में ज़ाहिर होंगे। शिया मज़हब के मुताबिक़, वह हज़रत इमाम हसन अस्करी (अलैहिस्सलाम) के फ़रज़ंद हैं और 255 हिजरी में पैदा हुए। उनका नाम मुहम्मद है, और वह रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम) की औलाद से हैं, ख़ास तौर पर हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) की नस्ल से। शिया अक़ीदे में वह बारहवें इमाम हैं, जो ग़ैबत (छिपाव) में हैं। ग़ैबत का मतलब यह है कि वह ज़िंदा हैं लेकिन लोगों की नज़रों से पोशीदा हैं, और अल्लाह की हिकमत से यह सिलसिला जारी है।

सुन्नी मज़हब में भी इमाम मेहदी का तसव्वुर मौजूद है, लेकिन फ़र्क़ यह है कि वह मानते हैं कि इमाम मेहदी अभी पैदा नहीं हुए। वह रसूलुल्लाह की औलाद से होंगे, उनका नाम मुहम्मद और वालिद का नाम अब्दुल्लाह होगा। सुन्नी हदीसों में यह बयान है कि वह आख़िरी ज़माने में ज़ाहिर होंगे और दुनिया को अद्ल से भर देंगे। मसलन, सुन्नी किताबों जैसे सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम में हदीसें हैं जो महदी के आने की बात करती हैं।

यह फ़र्क़ शिया और सुन्नी के बीच अहम है। शिया मानते हैं कि इमाम मेहदी 255 हिजरी से ग़ैबत में हैं, जबकि सुन्नी कहते हैं कि वह अभी जन्म लेंगे। लेकिन दोनों मज़ाहिब में यह यक़ीन है कि वह दज्जाल और गोग-मागोग जैसे फ़ितनों से लड़ेंगे और हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) उनके साथ होंगे। हज़रत ईसा इमाम मेहदी के पीछे नमाज़ पढ़ेंगे, जो इस्लामी एकता की मिसाल होगी।

शिया और सुन्नी अक़ीदे में फ़र्क़: एक तफ़सीली जायज़ा

शिया और सुन्नी दोनों इस्लाम के दो बड़े फ़िरक़े हैं, लेकिन इमाम मेहदी के बारे में उनके नज़रिए में फ़र्क़ है। शिया मानते हैं कि इमाम मेहदी इमामत का सिलसिला हैं, जो रसूलुल्लाह के बाद हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) से शुरू होता है। बारह इमामों में आख़िरी इमाम मेहदी हैं, जो ग़ैबत-ए-कुबरा में हैं। ग़ैबत-ए-सुग़रा 69 साल तक रही, जिसमें चार नाएबों के ज़रिए राब्ता था, लेकिन अब ग़ैबत-ए-कुबरा है, जो ज़हूर तक जारी रहेगी।

सुन्नी अक़ीदे में महदी एक आम इंसान होगा जो आख़िरी ज़माने में ज़ाहिर होगा। वह इमाम नहीं बल्कि एक मुजद्दिद (सुधारक) होगा। सुन्नी हदीसों में यह है कि "महदी मेरी औलाद से होगा, चौड़ी पेशानी और ऊँची नाक वाला। वह दुनिया को अद्ल से भर देगा।" लेकिन सुन्नी मानते हैं कि वह अभी नहीं पैदा हुए।

यह फ़र्क़ राजनीतिक और मज़हबी दोनों है। शिया इमामों को मासूम और इलाही इल्म वाला मानते हैं, जबकि सुन्नी इमामों को सिर्फ़ लीडर कहते हैं। लेकिन दोनों में इत्तिफ़ाक़ है कि महदी दज्जाल को हराएगा और दुनिया में अमन क़ायम करेगा। मौजूदा दौर में, जैसे 2025 में, कई वीडियोज़ और दावे हैं कि इमाम मेहदी का ज़हूर क़रीब है, ख़ासकर हज से पहले। लेकिन यह दावे सबूतों पर नहीं, सिर्फ़ कयास पर हैं।


इमाम मेहदी के ज़हूर की निशानियाँ: आम और ख़ास

इमाम मेहदी के ज़हूर से पहले कई निशानियाँ ज़ाहिर होंगी, जो हदीसों में बयान की गई हैं। ये निशानियाँ दो क़िस्म की हैं: आम और ख़ास।

आम निशानियाँ

आम निशानियाँ वह हैं जो दुनिया के हालात से ताल्लुक़ रखती हैं। मसलन:

  • दुनिया ज़ुल्म और जौर से भर जाएगी।
  • लोगों में फ़साद, जंगें, और तबाही फैल जाएगी।
  • क़ुदरती आफ़तें जैसे ज़लज़ले, सूखा, और महामारियाँ आएंगी।
  • ईसाई और मुसलमानों में जंगें होंगी, और रोम का बादशाह शाम पर क़ब्ज़ा करेगा।

ये निशानियाँ मौजूदा दौर में दिख रही हैं। जैसे, दुनिया में जंगें, इंसाफ़ की कमी, और क़ुदरती हादसे। हदीस में है कि "जब इमाम मेहदी ज़ाहिर होंगे, तो दुनिया ज़ुल्म से भरी होगी।"

ख़ास निशानियाँ

ख़ास निशानियाँ वह हैं जो मुतय्यन वक़्त और शख़्सियात से ताल्लुक़ रखती हैं। शिया हदीसों में पाँच हतमी निशानियाँ हैं:

  1. सुफ़यानी का ख़ुरूज: सुफ़यानी एक ज़ालिम होगा जो शाम से निकलेगा और सादात को क़त्ल करेगा। वह इमाम मेहदी के दुश्मन होगा।
  2. यमानी का क़याम: यमानी एक नेक शख़्स होगा जो यमन से निकलेगा और इमाम मेहदी की तरफ़ दावत देगा।
  3. आसमानी सदा: रमज़ान में आसमान से आवाज़ आएगी जो इमाम मेहदी की तरफ़ बुलाएगी। दूसरी आवाज़ दुश्मनों की तरफ़।
  4. नफ़्स-ए-ज़किया का क़त्ल: मक्का में एक पाक इंसान को क़त्ल किया जाएगा, जो इमाम का पैग़ाम ले जाएगा।
  5. बैदा में फ़ौज का धंसना: सुफ़यानी की फ़ौज बैदा (मक्का-मदीना के बीच) में ज़मीन में धंस जाएगी।

ये निशानियाँ विषम साल और विषम दिन में ज़ाहिर होंगी। इसके अलावा, रमज़ान में सूरज और चाँद ग्रहण होगा, जो आम नहीं होता।

सुन्नी स्रोतों में भी ये निशानियाँ हैं, लेकिन कम तफ़सील से। मसलन, सुन्नी हदीसों में दज्जाल, गोग-मागोग, और सुफ़यानी का ज़िक्र है।

हदीसों और नबुव्वतों में इमाम मेहदी का ज़हूर

रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम) ने कई हदीसों में इमाम मेहदी का ज़िक्र किया। एक हदीस में फ़रमाया: "अगर दुनिया का सिर्फ़ एक दिन बाक़ी हो, तो अल्लाह उस दिन को इतना लंबा करेगा कि मेरी औलाद से एक शख़्स ज़ाहिर हो जो दुनिया को अद्ल से भर दे।" यह हदीस शिया और सुन्नी दोनों किताबों में है।

इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया: "हमारे क़ाइम के ज़हूर से पहले पाँच निशानियाँ होंगी: सुफ़यानी, यमानी, आसमानी सदा, नफ़्स-ए-ज़किया का क़त्ल, और बैदा में फ़ौज का धंसना।"

क़ुरआन में भी इशारे हैं, जैसे सूरह अनबिया में कि "हम ज़मीन को अपने नेक बंदों का वारिस बनाएंगे।" शिया तफ़सीर में यह इमाम मेहदी से ताल्लुक़ रखता है।

इमाम मेहदी के ज़हूर के बाद क्या होगा?

ज़हूर के बाद इमाम मेहदी दुनिया पर हुकूमत करेंगे। वह मक्का से ज़ाहिर होंगे, काबा पर हाथ रखकर आवाज़ देंगे। उनके 313 साथी होंगे, जो दुनिया के कोनों से आएंगे। हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) उनके साथ होंगे और दज्जाल को क़त्ल करेंगे। दुनिया में अद्ल क़ायम होगा, कोई ज़ुल्म नहीं रहेगा। हदीस में है कि वह 7 या 9 साल हुकूमत करेंगे।

उनकी हुकूमत में इल्म, अमन, और तरक़्क़ी होगी। लोग अल्लाह की इबादत में मशगूल होंगे, और फ़साद ख़त्म हो जाएगा। यह वह दौर होगा जब इस्लाम पूरी दुनिया पर फैल जाएगा।


मौजूदा दौर और ज़हूर की निशानियाँ: 2025 का जायज़ा

आज की दुनिया में ज़ुल्म, जंगें, और तबाही देखकर लगता है कि ज़हूर क़रीब है। 2025 में, कई दावे हैं कि हज से पहले इमाम मेहदी ज़ाहिर होंगे। यूट्यूब पर वीडियोज़ जैसे "हज से पहले इमाम मेहदी के ज़ुहूर का दावा" वायरल हैं। लेकिन हदीसों में यह साफ़ है कि ज़हूर का वक़्त सिर्फ़ अल्लाह जानता है। मौजूदा जंगें, जैसे इजराइल और फिलिस्तीन की, और क़ुदरती आफ़तें, आम निशानियाँ हैं।

शिया उलेमा जैसे अल्लामा शहरयार रज़ा आब्दी कहते हैं कि ज़हूर की निशानियाँ प्राकृतिक और आसमानी होंगी। सुन्नी स्रोतों में भी यह है कि महदी हिंदुस्तान या पाकिस्तान से ताल्लुक़ रख सकता है, लेकिन यह कयास हैं।

ख़ुलासा: इमाम मेहदी का ज़हूर और हमारी ज़िम्मेदारी

इमाम मेहदी का ज़हूर उम्मीद का मरकज़ है। यह वह वक़्त होगा जब दुनिया अद्ल से भरी होगी। लेकिन हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम नेकी पर क़ायम रहें और फ़साद से दूर। इंतेज़ार का मतलब सिर्फ़ इंतेज़ार नहीं, बल्कि अमल है। दुआ-ए-नुदबा और दुआ-ए-अहद पढ़ें, जो शिया रिवायतों में हैं।

Conclusion : इमाम मेहदी का ज़हूर और हमारी ज़िम्मेदारी

इमाम मेहदी का ज़हूर इस्लाम का वह अहम अक़ीदा है जो मुसलमानों के दिलों में उम्मीद की किरण जगाता है। यह वह वक़्त होगा जब दुनिया ज़ुल्म और बेइंसाफ़ी से आज़ाद होकर अद्ल और अमन से भर जाएगी। उनकी क़ियादत में फ़साद और बुराई का ख़ात्मा होगा, और दुनिया में इंसाफ़ का नया दौर शुरू होगा। हदीसों और क़ुरआन के इशारों से साफ़ है कि उनका ज़हूर मक्का में होगा, और वह अल्लाह के हुक्म से दुनिया को रौशन करेंगे। लेकिन उनका इंतेज़ार सिर्फ़ बैठकर नहीं, बल्कि नेक अमल और दुआ के ज़रिए होना चाहिए। हमारा फ़र्ज़ है कि हम अपने ज़िंदगी को बेहतर बनाएँ, ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ, और उनकी राह की तय्यारी करें। अल्लाह हमें उनके ज़हूर का गवाह बनाए और उनकी क़ियादत में अमन की दुनिया देखने की तौफ़ीक़ दे।


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