16 Syeda Ki Kahani in Hindi । 16 सैय्यदो की कहानी हिंदी में

16 Syeda Ki Kahani in Hindi । 16 सैय्यदो की कहानी हिंदी में : दोस्तों बहुत सारे लोगों के फरमाइश पर आज हम 16 सैयदों की कहानी लिख रहे हैं। हम आपकों बताते चले की इस कहानी का जिक्र किसी भी किताब ( कुरान मजीद या हदीस) में नहीं मिलता है। फिर भी आप पढ़ना चाहते हैं तो नीचे तफसील से 16 सैयदों की कहानी लिखा गया है। लेकिन पढ़ने से पहले ये दो मिनट का विडियो जरूर देखें।

16 Syeda Ki Kahani in Hindi । 16 सैय्यदो की कहानी हिंदी में

16 Syeda Ki Kahani Full Information । 16 सैय्यदो की कहानी की सच्चाई।


16 Syeda Ki Kahani in Hindi । 16 सैय्यदो की कहानी हिंदी में 



बिस्मिल्लाहिर् रहमानीर् रहीम



किसी शहर में एक बादशाह रहता था। उसके यहाँ कोई औलाद नहीं थी। एक दिन सुबह सवेरे जब वह दाँत साफ़ कर रहा था, तब किसी भिखारी की आवाज़ आई। फ़ौरन ही बादशाह ने हीरे से भरी हुई एक थाली पेश की। भिखारी ने मुंह फेर लिया और लिए बगैर चल दिया बादशाह को सख्त अफ़सोस हुआ। 

उसने दरबार- ए-आम किया और भिखारी से इन्कार की वजह पूछी। भिखारी ने कहा- “मैं बाँझ घर में से कुछ नहीं लेना चाहता।” यह सुनकर बादशाह बहुत दुखी हुआ । बादशाह ने फ़ौरन शाही लिबास (वस्त्र) उतार कर फ़क़ीरी जामा (वस्त्र) पहन लिया और महल से चल दिया। चलते वक़्त कहने लगा अगर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मेरी इज़्ज़त रख लेगा तो मैं वापस लौटूंगा और बीवी से रुख़्सत (विदा) होकर जंगल की राह ली। राह में सोलह सय्यद तशरीफ़ फ़रमा रहे थे। उन्होंने राजा को बुलवाया, लेकिन राजा ने कहा- “मैं वापस तब आ सकता हूँ, जब मेरी उम्मीद पूरी होगी।”

उन्होंने कहा कि तुम्हारी उम्मीद ज़रूर पूरी होगी, तुम इधर आओ और सुनो। कल पन्द्रहवीं तारीख़ है। तुम गुस्ल (स्नान) करना और सहरी करके सोलहवीं का रोज़ा रखना और चार रकअत नफ़िल सोलह सय्यदों के नाम पर अदा करना । तेल और खजूर से रोज़ा खोलना । पाँच पैसे की शीरनी बाँट कर हमारी कहानी सुनना। जाओ तुम्हारी उम्मीद ज़रूर पूरी होगी। जब सोलह रोज़े पूरे हो जाएं तो इन-शा अल्लाह तुम्हारी हैसियत के मुताबिक़ हमारे नाम पर खाना पकाकर फ़ातिहा कर देना।

यह सुनकर बादशाह उसी वक़्त अपने महल में आकर हुकूमत सम्भालने लगा, गुस्ल किया, सोलहवीं का रोज़ा रखा। ऐसे ही जब नौ रोज़े ख़त्म हो पाए तो उसके यहां लड़का तवल्लुद हुआ। मगर बादशाह बराबर रोज़े रखता रहा। जब सोलह रोज़े पूरे हुए तो बादशाह ने बड़ी अक़ीदत के साथ फ़ातिहा दिलवाई और शीरनी बाँटकर कहानी सुनी।

महल के क़रीब एक बुढ़िया रहती थी। उसने बादशाह से पूछा कि उसके यहां किस तरीके से औलाद हुई। बादशाह ने फ़रमाया- “बड़ी अम्मा, शाम में तशरीफ़ लाएं और फ़ातिहा का खाना खाइये, तो मैं बताऊँगा।”

जब बुढ़िया पेट भर खाना खा चुकी तो बादशाह ने सोलह सय्यदों के नाम से रोज़े रखने की बरकत का माजरा सुनाया। बुढ़िया ने भी मन्नत मान ली, मैं अपनी ग़रीबी दूर होने के लिए रोजे रखूंगी।

वह भी रोज़े रखती रही। सोलह रोज़े पूरे होने को आए तो उसने पाव सेर खाना पकाया और फ़ातिहा देने वाली थी कि उस बुढ़िया के घर एक लकड़हारा जो हर रोज़ आया करता था, उस रोज़ जब आया तो बुढ़िया का घर बन्द पाया। लकड़हारे ने दरवाज़ा खटखटाया तो अन्दर से ही बुढ़िया ने जवाब दिया मुझे काम ज़्यादा तुम मेहरबानी करके कल तशरीफ़ लाना ।

जब दूसरे दिन लकड़हारा आया तो वह बहुत हैरान हुआ क्योंकि जहाँ बुढ़िया की झोंपड़ी थी वहां एक शानदार हवेली बनी हुई थी। उसने झरोखे से झांककर देखा तो बुढ़िया अन्दर झूले में झूल रही थी।

उसने बुढ़िया को पहचान लिया और आवाज़ दी। बुढ़िया ने भी उसे देखते ही पहचान लिया और अन्दर बुलाया तो लकड़हारे ने पूछा- “बड़ी अम्मा, क्या मैं पूछ सकता हूँ कि आपको इतनी दौलत किस तरह हाथ आई ?”

बुढ़िया ने फ़रमाया- ये सब सोलह सय्यदों के नाम पर सोलह रोज़े रखने की बरकत है। हमारे राजा के यहां उनके ही तुफ़ैल से ख़ुदा ने औलाद अता फ़रमाई । मैंने भी इन रोज़ों की बरकत को आज़माया है, ये इसी की देन है जो आज मेरी ग़रीबी दूर हो गई।

लकड़हारे ने मन्नत मान ली और सोलह रोज़े ख़त्म भी न हो पाए थे कि वो मालदार हो गया और बहुत बड़ी फ़ातिहा की। लेकिन उस रोज़ पाँच पैसे की शीरनी मंगाकर सोलह सय्यदों की कहानी भूल गया। अपनी बीवी से सोते वक़्त कहने लगा मैं कहानी सुनकर शीरनी बाँटना भूल गया। उसकी बीवी ने कहा कोई परवाह नहीं हम तो सोलह सय्यदों के नाम की फ़ातिहा दे चुके हैं। और वो दोनों सो गए।


जब लकड़हारा सुबह हाजत के लिए जंगल को गया तो उसके हाथ में पानी का लोटा था। अचानक शहज़ादे के गुम हो जाने की ख़बर हुई। सिपाही उसकी तलाश में फिरता हुआ उधर निकला तो देखा कि उस लकड़हारे के हाथ में जो लोटा था वह शहजादे के खून से भरा हुआ सर बन गया है। सिपाही ने फ़ौरन लकड़हारे को गिरफ़्तार कर लया और बादशाह के सामने हाज़िर किया। बादशाह के गुस्से की हद न रही। उसको क़ैद में भिजवा दिया। कैदख़ाने में कुछ ही दिन गुज़रे थे कि ख़्वाब में देखा कि सोलह सय्यद कह रहे हैं कि ऐ ग़ाफ़िल, तूने हमारी कहानी नहीं सुनी और शीरनी क्यों नहीं बांटी ?

कल पन्द्रहवीं तारीख़ है, भूल न जाना, गुस्ल कर सोलहवीं का रोज़ा रखना, हमारी कहानी दूसरे को सुनाकर शीरनी बांट देना । उसने कहा शीरनी के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। तो उन्होंने कहा कि सुबह उठकर देखना तेरे बिस्तर पर पाँच पैसे मिलेंगे। दूसरे दिन उसने गुस्ल किया, रोज़ा रखा, नफ़िल नमाज़ पढ़ी। पाँच पैसे लिए हुए खिड़की से बाहर देख रहा था कि कोई मिले तो शीरनी मंगवाए।

इत्तेफ़ाक़ से एक महाजन का वहाँ से गुज़र हुआ । वह अपने बेटे की शादी का सामान ख़रीदने के लिए जा रहा था। लकड़हारे ने उससे दरख्वास्त की कि वे फ़ातिहा के लिए शीरनी ला दे। उसने इन्कार किया और चल दिया। कुछ ही देर मे वहाँ से एक बुढ़िया रोती पीटती अपने मरे हुए बेटे के लिए कफ़न दफ़न का सामान ख़रदीने जा रही थी। लकड़हारे ने सोलह सय्यदों के नाम फ़ातिहा देने के लिए शीरनी लाने के लिए कहा तो उस मुक़द्दस फ़ातिहा की शीरनी फ़ौरन ले आई। 

कहानी सुनी और इस फ़ातिहा की शीरनी व तबर्रुक लिए हुए दुकान पर पहुंची। अपने बेटे को दफ़नाने का सामान ख़रीदा और घर पहुंची तो यह देखकर हैरत की हद न रही कि उसका बेटा ज़िन्दा और सलामत खड़ा है। 

उसको मालूम हुआ कि यह सोलह सय्यदों की कहानी सुनने की बरकत है और जिस महाजन ने शीरनी लाने से इन्कार कया था उसका बेटा मर गया, जिसकी शादी होने वाली थी। और वह शहज़ादा जो गुम हुआ था वो रास्ता भूल जाने की वजह से पूछता हुआ वापिस आ गया है। बादशाह को बहुत अफ़सोस हुआ कि मैंने नाहक़ बेक़सूर लकड़हारे को क़ैद कर दिया। लकड़हारे को बुलवाकर कहा कि हमसे ख़ता (ग़ल्ती) हुई है, ख़ुदा क लिए हमें माफ़ कर दो। 


लकड़हारे ने कहा- “जहाँपनाह, ये ख़ता आपसे नहीं हुई बल्कि हमने ख़ता की थी, जिसकी हमको सजा मिली।” 

बादशाह ने कहा- तुम्हारी क्या ख़ता थी? लकड़हारे ने कहा सोलह सय्यदों की कहानी सुनकर शीरनी न बाँटने का अज़ाब हम पर नाज़िल हुआ था। 

बादशाह ने भी मन्नत मांग ली। लकड़हारा अपने घर जाकर ऐश व आराम की ज़िन्दगी बसर करने लगा।

बस ऐ अज़ीज़ों, जो कोई सही हाजत रखता हो, वह सोलह सय्यदों की कहानी सुनाकर शीरनी बांटे। ख़ुदा के फ़ज़लो करम से तुफैल-ए-हज़रत मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहि वसल्लम की बरकत से अपनी मुराद को पाएंगे।

आमीन या रब्बल आ-लमीन!

यह कहानी गैर मुसद्देक़ा है।



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Conclusion 

बहुत ही माजरत के साथ कहना पड़ रहा है। इन सब कहानियों पर भरोसा करने से अच्छा है। आप लोग कुरान मजीद पढ़ें,सुने, और समझें। और अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के लिए रोज रखें। और उसी की इबादत करें। इन किताबों का जिक्र ना कुरान में है और ना ही किसी हदीस में है। यहा तक की इन किताबों को कौन लिखा है उसका भी कोई अता पता नहीं है। तो आप लोगों से बस यही कहना है। आप लोग कुरान और हदीस पढ़ें। रोज़ा रखे, नफली रोज़े रखे। और अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद सल्ललाहू अलैहि वसल्लम के सुन्नत पर चलें। अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हम सब को दिन के रास्ते पर चलने की तौफीक अता फरमाए। 


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