Hazrat Musa Aur Hazrat Khizar Ki Mulaqat Ka Waqia in Hindi । हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत खिजर का वाकया।

अस्सलाम अलैकूम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू।
आज का वाक्या है हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम ( Hazrat Musa Alaihi Salam Aur Hazrat Khizar Alaihi Salam ) का । आईए जानते हैं हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम से आखिर क्यों मिलना चाहते थे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम। हम हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम की कहानी को हिन्दी में लिख रहे हैं। ताकि हमारे हिन्दी पढ़ने वाले भाईयों और बहनों को भी इस्लाम की जानकारी मिलती रहे।

Hazrat Musa Aur Hazrat Khizar Ki Mulaqat Ka Waqia in Hindi । हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत खिजर का वाकया।

Hazrat Musa Alaihi Salam Milne Kyo Gye | हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम मिलने क्यों गए।

एक मर्तबा बनी इस्राइली को ख़ुत्बा देने के लिए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम खड़े हुए । आप अलैहिस्सलाम से पुछा गया लोगों में ज़्यादा आलिम कौन है । हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फरमाया मै ज्यादा आलिम हु । तों अल्लाह तआला को आप का ये अंदाज पसंद नहीं आया। अल्लाह ताला ने आप पर एताब फरमाया । क्योंकि आप अलैहिस्सलाम ने सवाल के जवाब को रब्ब ताला की तरफ मंसुब नहीं किया । हालांकि ये कहना चाहिये की अल्लाह तआला बेहतर हैं।
अल्लाह ताला ने आप अलैहिस्सलाम पर वही की के मेरे बंदों में से एक बन्दा मजमा उल बहरीन (दरियाओ के मिलने की जगह) में रहता है वो तुम से ज्यादा इल्म रखता है, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ की ऐ मेरे रब्ब मै उन्हें कैसे पाऊंगा तो आपको बताया गया कि तुम अपने थैले में एक मछली बंद करके अपने साथ ले लो जहां तुम्हारी मछली गुम हो जाए वही उनका मकाम होगा।
(मुस्लिम शरीफ, जिल्द-2, सफा-269)

Hazrat Musa Alaihi Salam ka Safar Suru karna । हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का सफ़र सुरु करना।

क़ुरआन अज़ीम में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है “और याद करो जब मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अपने खादिम से कहा । में बाज ना रहूंगा जब तक वहा ना पहुंच जाऊं, जहां 2 समंदर मिले हैं। चाहे मुझे क़रनो (मुद्दतों ) तक चलाना पड़े, फिर जब वो दोनो उन दरियाओ के मिलने की जगह पहुंचे। और आराम करने के लिए रूकें।और वही सो गए। और अपनी मछली भुल गए । मछली तड़प कर समंदर में कूद गई, जिस जगह कूदी वहां एक सुराख़ बन गया।
हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) जब नींद से बेदार हुए तो फिर सफ़र पे चलने लगे, जब दोपहर का खाने का वक्त हुआ तो आप ने खादिम से कहा, खाना लाओ ।
बेशाक हमें अपने इस सफर में बड़ी मशक्कत का सामना हुआ है, ख़ादिम बोला, भला दिखाये तो जब हमने इस चट्टान के पास जगह ली थी तो बेशाक मैं मछली को भूल गया और मुझे शैतान ही ने भुला दिया की मैं उसका जिक्र करू । और मछली ने तो तड़प के समंदर में छलांग लगा दी, अपनी राह बना ली। (सूरह अल कहफ, आया -60, 61, 62, 63)

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने जिस जवान को अपने साथ लिया उनका नाम 'युशा बिन नून' था। जो आप की खिदमत व सोहबत में रहते थें और आप से इल्म हासिल करते थे ।
और आप के वाली अहद वो, मजमा उल बहरीन से मुराद 2 दरियाओ की जगह यानी बहरे (दरिया) फारस और बहरे (दरिया) रम जहां मिलेंगे वहीं तुम्हें हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम मिल जाएंगे, उसकी निशानी ये बतायी गई है कि जहां तुम्हारी मछली गुम हो जाए उसी मकाम में उनको तलाश करना। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने वहा पहुंचने का पक्का इरादा कर लिया । और फ़रमाया कि मैं अपनी कोशिश जारी रखूंगा , यहां तक कि वहां पहुंच ना जाऊं, बेशक वो जगह कितनी ही दूर हो मेरा सफर वहा पहुंचने तक जारी रहेगा, फिर इन हजरात ने रोटी और भुनी हुई नमकीन मछली अपने साथ एक थैले में ले ली, ताकी रास्ते में काम आए, फिर ये अपनी मंजिल मकसूद की तरफ रवाना हो गए, जहां एक पत्थर की चट्टान थी वहा इन हजरात ने आराम किया और सो गए, भुनी हुई मछली थैले में जिंदा हो गई, और तड़प कर दरिया में गिर गई, उस पर से पानी का बहाव रुक गया और एक मेहराब सी बन गई, हजरत युशा बिन नून बेदार हो चुके थे मछली के जिंदा हो कर दरिया में गिरने को देख रहे थे, लेकिन ये वक़िया हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को बताना भूल गए थे,
दोनो हजरत वहा से चले दूसरे दिन खाने के वक्त तक अपना सफर जारी रखा, जब दूसरे दिन खाने का वक्त हुआ तो हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा सफर की थकान भी है और भूख की शिद्दत भी, इस लिए थैले से रोटी और मछली निकालो ताकी खाना खा ले, उस वक़्त "युशा बिन नून" को याद आया उन्होंने कहा मछली तो ज़िंदा हो कर दरया में चली गई थी, भुनी हुई मछली का ज़िंदा हो कर दरिया में जाना हैरन और ताजुबनाक मामला था, हज़रत युशा ने अपने भुलने को शैतान की तरफ मनसुब किया। (तज़किरतुल अम्बिया अलैहिस्सलाम, सफ़ा-457)


Hazrat Musa Alaihi Salam Aur Hazrat Khizr Alaihi Salam ki Mulaqat । हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम की मुलाकात।


क़ुरान में अल्लाह अज़्ज़वाजल इरशाद फ़ार्मते है। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा यही तो हम चाहते थे तू पीछे पलटे अपने कदमों के निशान देखते, तो हमारे बंदों में से एक बंदा पाया जिसे हमने अपने पास से रहमत दी और उसे अपना इल्मे लादून्नी आता किया, उससे मूसा ने कहा क्या मै तुम्हारे साथ राहु इस शर्त पर कि तुम मुझे सिखा दोगे। नेक बात जो तुम्हें ता-इल्म हुई, कहा आप मेरे साथ हरगिज ना ठहर सकेंगे, और उस बात पर सब्र करेंगे जिसे आपका इल्म नहीं घेरे हो, कहा अनकारीब (बहुत जलद) अल्लाह चाहे तो तुम मुझे साबिर पाओगे, और मैं तुम्हारे किसी हुक्म के खिलाफ ना करूंगा, कहा तो अगर आप मेरे साथ रहते हैं तो मुझसे किसी बात को ना पूछे जब तक में खुद उसका जिक्र ना करूं” (सूरह अल कहफ, आयत-64, 65, 66, 67, 68, 69, 70)


हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत 'युशा वहा लौट कर आए जहाँ मछली ज़िंदा हो कर पानी में चली गई थी, पानी का बहाव रुकने की वजह से मुख्तलिफ निशानत मौजुद थे, हज़रत मुसा अलैहिस्सलाम ने कहा यही मक़ाम हमारा मक़्शाद है, दोनो ने तलाश करना शुरू किया, यहां तक ​​कि वो एक चट्टान के पास आए तो देखा की एक शख़्स चादर ओढ़े लेट रहा था, हजरत मुसा अलैहिस्सलाम ने उनको सलाम किया, उन्होंने कहा इस जमीन में सलाम कहा से आ गया । यह तो कोई सलाम करने वाला कभी नजर नहीं आया, आप अलैहिस्सलाम ने कहा मै मूसा हूं, हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम ने कहा बनी इस्राइल के मूसा, आप ने कहा जी हां।हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कहा अल्लाह तआला ने जो इल्म तुम्हें अता फरमाया वो मुझे अता नहीं फरमाया और जो इल्म मुझे अता फरमाया तुम्हें नहीं अता फरमाया, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या मैं आपकी ताबेदारी कर सकता हूं कि तुम मुझे वो इल्म आता करदो, हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम को मालुम था कि इनमें जाहिरी शरियत का इल्म आता किया गया है ये बातिनी अमूर पर सब्र नहीं कर पाएंगे, इस लिए उन्हें कहा तुम कैसे सब्र कर सकोगे ।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा में इंशा अल्लाह सब्र करूंगा। (मुस्लिम शरीफ, जिल्द-2, सफा-270) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम चूंकि पहले ही कह चुके थे कि मै इंशा अल्लाह सब्र करूंगा और आपके हुक्म की ना-फ़रमानी नहीं करूंगा, इस लिए आपको ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने साथ रहने की इजाज़त दे दी। (तज़किरतुल अम्बिया अलैहिस्सलाम, सफ़ा-458, 459)

Hazrat Khizr Alaihi Salam ka Kashti Todna । हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम का किस्ती तोड़ना।

‌कुरआन शरीफ में ही की
“अब दोनो चले यहां तक ​​की जब कश्ती में सवार हुए उस बंदे ने उसे चिर डाला, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा क्या तुमने इसे इस लिए चीरा की इसके सवारो को डूबा दो, बेशक ये तुमने बुरी बात की, कहा मैं ना कहता था की आप मेरे साथ हरगिज ना ठहर सकोगे, कहा मुझ से मेरी भुल पर गिरफ्त ना करो और मुझ पर मेरे काम में मुश्किल ना डालो” (सूरह अल कहफ, आयत-71, 72, 73)

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम दरिया के किनारे चल रहे थे, उनके क़रीब से एक कश्ती वाले लोगो ने हज़रत खिज्र अलैहिस्सलाम को पहचान लिया था, इस लिए उन लोगों आपस में कलाम (बात) किया कि इन्हे कश्ती में सवार करना चाहिये , लिहज़ा उन्होन बगैर उजरत (मजदुरी) लेने के उन हजरात को सवारी कर लिया,

हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम ने कश्ती का एक तख्ता उखाड़ दिया था, हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने ताजुब करते हुए कहा कि इस कौम ने हमें बगैर उजरत (मजदुरी) के कश्ती पर सवार किया, तुमने इसे तोड़ दिया, तुम लोगो को ग़र्क करना चाहते हो , ख्याल रहे ये कश्ती का तोडना किनारे के करीब जा कर था और खिज्र अलैहिस्सलाम ने वक्त के तौर पर उसमें कील भी लगा दिया था,

हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम ने कहा मैंने जो कहा था कि तुम जाहिर देख कर सब्र नहीं कर सकोगे, हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा मुझसे भुल वाकई हो गई है, इसलिए इसमें मेरी कोई गिरफ्त ना करे। (रूहुल मानी, जिल्द-8, हिस्सा-1, सफा-337)
(तज़किरतुल अम्बिया अलैहिस्सलाम, सफ़ा-460)

Hazrat Khizr Alayhis Salaam ka Ek Ladke ko Qatl karna । हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम का एक लड़के को कत्ल करना।


कुरआन मजीद में ही की 
“फिर दोनो चले यहां तक ​​की जब एक लड़का मिला उस बंदे ने उसे कत्ल कर दिया मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा क्या तुमने एक सुथरी जान बेकसी जान के बदले कत्ल कर दी, बेशक तुमने बहुत बुरी बात की, कहा मैंने आपसे ना कहा था कि आप हरगिज़ मेरे साथ ना ठहर पाएंगे, कहा इसके बाद मैं तुम से कुछ पुछूं तो फिर मेरे साथ न रहना बेशक मेरी तरफ से तुम्हारा उज़्र पूरा हो चूका” (सूरह अल कहफ, आयत-74, 75, 76)

जब कश्ती से दोनो हजरात निकले तो किनारे पर चल रहे थे, जब उनका गुजर एक बस्ती से हुआ, वहा लड़के खेल रहे थे, एक लड़का जो तमाम लड़को से ज्यादा हसीन और साफ-सुथरा था, आप ने उसे सर से पकड़ा और उसका सर जुदा कर दिया, एक रिवायत में ही आप ने उसे लिटा कर छुरी से जबह कर दिया,

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बड़े गुस्से में ज़ोरदार आवाज़ से कहा, ये तुमने कितना बुरा काम कर दिया, एक ना-बालिग बचे को क़त्ल कर दिया, जो साफ-सुथरा गुनाहों से पाक था, उस पर कोई क़सास लाज़िम नहीं था, ये ऐसा काम तुमने किया है जो सरासर अक्ल के खिलाफ है, हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम ने कहा मैंने जो कहा था कि तुम सब्र नहीं कर सकोगे, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा इसके बाद अगर में कोई सवाल किया तो तुम मेरा साथ छोड़ देना क्योंकि उस वक्त तुम्हें मेरी तरफ से उजर हासिल हो जाएगा। (रूहुल मानी, जिल्द-8, हिस्सा-1, सफा-338) (तज़किरतुल अम्बिया अलैहिस्सलाम, सफ़ा-460, 461)

Hazrat Khizr Alaihi Salam ka Diwaar ko Sidha karna । हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम का दीवार को सीधा करना।


कुराने पाक में ही की 
“फिर दोनो चले यहां तक ​​कि जब एक गांव वालों के पास आएं उन गांव वालों से खाना मांगा उन्होंने उन्हें दावत देनी काबुल ना की, फिर दोनो ने उस गांव में एक दीवार गिरी पाई हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम ने उसे सीधा कर दिया मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा तुम चाहते तो इस पर कुछ मजदुरी ले लेते, कहा यह मेरी और आपकी जुदाई है, अब मैं आपको इन बातों का फेर बताउंगा जिन पर आपसे सब्र ना हो सका” (सूरह अल कहफ, आयत-77, 78)

ये बस्ती 'अंतकिया' या 'आयीला' थी, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम भुख की वजह से इस हालत में थे कि किसी से गिज़ा (खाना) तालाब करना जायज़ होता है वह बल्की जान बचने की वजह से वाजिब हो जाता है, ऐसे हाल में उन लोगों पर भी वाजिब हो जाता है कि वो गिज़ा (खाना) खिलाए, इसी वजह से हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दीवार दुरुस्त करने पर एतराज़ किया कि उन लोगों ने तो हमें शदीद भूख के हालात में खाना भी नहीं खिलाया तो उनसे उज़रत (मजदुरी) लेनी जरूरी थी, जब उन दोनो ने दीवार को देखा जो एक तरफ झुकी हुई थी गिरने के करीब पहुंच चुकी थी,
हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने हाथ से सीधा कर दिया या सिर्फ़ हाथ फेरा और वो दीवार सीधी हो गई, ये दर-हकीक़त उनका मोअजीज़ा था, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के इस एतराज़ पर हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कहा आपके वादे के मुताबिक मेरे और आपके दरमियान जुदाई का वक़्त आ चुका है, अलबत्ता ये तीन काम जो मैंने किया है, जिस पर आपने एतराज़ किया उन में से हर एक की वजह और हिकमत मै ब्यान कर देता हूं ताकि आपको पता चल जाए और आप जिस गरज से आए थे, यानि इल्म हासिल करने के लिए वो भी हासिल हो जाए। (तज़किरतुल अंबिया अलैहिस्सलाम, सफा-461)

Hazrat Khizr Alaihi Salam ka Apne Kamo ki Wazaahat karna । हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम का अपने कामों की वजाहत करना।


क़ुरआन अज़ीम में ही की 
“वह जो कश्ती थी वह कुछ मोहताजो की थी, जो दरिया में काम करते थे तो मैं चाहता की उसे ऐबदार कर दू , और उनके पीछे एक बादशाह था कि हर साबुत अच्छी ज़बरदस्ती छिन लेता, (सूरह अल कहफ, आयत-79) 
हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम ने फरमाया ये कश्ती दास मिस्किनो की है जिनमे कुछ अपाहिज भी है, वो इसकी मजदुरी से अपना गुज़र बसर कर रहे हैं, जब ये वापस लौटेंगे तो इनको बादशाह 'जालंदी' का सामना करना पड़ेगा वो सही कश्ती को पकड़ेगा लेकिन ऐबदार को नहीं पकड़ेगा, इस लिए मैंने उसे ऐबदार बनाने का फैसला कर लिया ताकि ये कश्ती वो ना छिन सके और उनकी मेहनत व मजदुरी जारी रहे,

क़ुरान अज़ीम में आगे ही की 
"और वह जो लड़का था उसके मां-बाप मुसलमान थे तो हमें डर हुवा की वह उनको सरकसी और कुफ्र पर चढ़ा दे, तो हमने चाहा की उन दोनों का रब्ब उससे ज्यादा बेहतर सुथरा और उससे ज्यादा महेरबानी में करीब आता करे" (सूरह अल कहफ, आयत-80, 81)
एक रिवायत में वह कि बेशाक वो लड़का जिसे हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम ने कत्ल किया उसपर काफिर होने की मोहर लगा दी गई थी अगर ये जिंदा रहा तो अपने वालिदैन को सरकसी और कुफ्र की तरफ मजबूर कर देगा। (मुस्लिम शरीफ, जिल्द-2, सफा-345)
एक और रिवायत में ही कि बेशक अल्लाह तआला को मालुम था कि ये बड़ा हो कर काफिर हो जाएगा अगर चे बचपन में काफिर नहीं कहा जा सकता था। (Muslim Shareef, Jild-2, Safa-345)


क़ुरआन अज़ीम में आगे वह कि 
वह दिवार शहर के दो यतीम लड़को की थी और उसके नीचे उनका खजाना था और उनका बाप नेक आदमी था तो आपके रब्ब ने चहा की वो अपनी जवानी को पहुंच तब वो अपना खजाना निकाले, आपके रब की रहमत से, और यह सब कुछ मैं अपने हुक्म से ना किया, यह फेर है उन बातों का जिसपर आपसे सब्र ना हो सका” (सूरह अल कहफ, आयत-82)
इस आयते करीमा में जो ज़िक्र किया गया है कि उनका बाप नेक आदमी था, इस से पता चला की बाप की नेकी से उनकी औलाद पर अल्लाह तआला की महेरबानी होती है,

बेशक अल्लाह ताला अपने नेक बंदे की नेकियो की वजह से उसकी औलाद और उसकी औलाद की औलाद और उसके कबाइल और उसके इर्द-गिर्द (आस-पास) रहने वाले पड़ोसियों की हिफाजत करता है वो लोग जब तक उस बंदे के पड़ोस में रहेंगे उस वक्त तक अल्लाह ताला की हिफाजत में होंगे। (तफसीरे मजहरी, जिल्द-3, सफा-45) (तज़किरतुल अंबिया अलैहिस्सलाम, सफ़ा-463, 464)

Jaruri Baat । जरूरी बात।

कुछ लोग वली को नबी से बड़ा देख कर गुमराह हो गए, और उन्होंने यह ख्याल किया कि हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को हजरत खिजर अलैहिस्सलाम से इल्म हासिल करने का हुक्म दिया गया था, जब की हजरत खिजर अलैहिस्सलाम वली है और हकीकत में वली को नबी से बड़ा मानना ​​खुला कुफ्र है,  और हजरत खिजर अलैहिस्सलाम नबी है और अगर ऐसा ना हो जैसा की कुछ का गुमान है तो यह अल्लाह तआला की तरफ से हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के हक में अजमाइश है।


Question - Hazrat Khizar Aalaihissalam NABI the ya Wali । हज़रत खिजर अलैहिस्सलाम नबी थे या वली?
Answer - इस मसले में अहले इल्म के हर तरफ से दलाईल मौजुद हैं, कुछ हजरात ने वली कहा और कुछ ने नबी कहा, मोहककीन हजरत इस तरफ है कि खिजर अलैहिस्सलाम नबी थे,




Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now