इस्लाम में कितने नबी हैं? | Islamic Prophets in Islam (124000 Nabi Explanation in Hindi)
नबियों की अहमियत इस्लाम में
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो तौहीद (एक अल्लाह पर ईमान) और हिदायत (मार्गदर्शन) पर आधारित है। अल्लाह तआला ने इंसानों को राह दिखाने के लिए हर दौर, हर क़ौम और हर ज़माने में नबी (Prophets) और रसूल (Messengers) भेजे।
ये नबी अल्लाह के बंदों तक उसका पैग़ाम पहुँचाने वाले थे — ताकि लोग सही और गलत में फर्क कर सकें, ज़ुल्म से बचें और नेक राह पर चलें।
कुरआन-ए-पाक में अल्लाह तआला फरमाता है:
“और हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा ताकि वह कहे – अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत से बचो।”
(सूरह अन-नहल 16:36)
इससे साफ़ है कि अल्लाह ने सिर्फ कुछ लोगों को नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए पैगंबर भेजे — ताकि हर पीढ़ी में हिदायत का सिलसिला जारी रहे।
इस्लाम में कुल कितने नबी भेजे गए?
इस सवाल का जवाब बहुत लोगों के मन में होता है — “इस्लाम में कुल कितने नबी थे?”
हदीसों के मुताबिक, अल्लाह ने कुल 1,24,000 नबी भेजे, जिनमें से 315 रसूल (Message लाने वाले) थे।
हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी (रज़ि अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि उन्होंने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा:
“या रसूलल्लाह! कितने नबी भेजे गए?”
आपने फ़रमाया: एक लाख चौबीस हज़ार (124,000)।
फिर पूछा: “उनमें रसूल कितने थे?”
तो आपने फ़रमाया: तीन सौ पंद्रह (315)।
(रिवायत: मुस्नद अहमद, हदीस नं. 21257)
यानी हर नबी रसूल नहीं होते, मगर हर रसूल नबी होता है।
नबी और रसूल में क्या फर्क है?
इस्लाम में “नबी” और “रसूल” — दोनों शब्द अक्सर एक साथ इस्तेमाल होते हैं, लेकिन दोनों के मायने (मतलब) में थोड़ा सा अंतर है।
दोनों ही अल्लाह के भेजे हुए बंदे होते हैं, मगर उनके मिशन और जिम्मेदारियों का दायरा अलग-अलग होता है।
🔹 नबी (Prophet) कौन होता है?
नबी वह होता है जिसे अल्लाह तआला की तरफ से वही (Divine Revelation) मिलती है।
नबी का काम अपनी क़ौम या उम्मत को पिछले नबी की शरियत (कानून) पर चलने की दावत देना होता है।
वह लोगों को अल्लाह की इबादत की ओर बुलाता है और बुराइयों से रोकता है।
उदाहरण के तौर पर — हज़रत हारून (अलैहिस्सलाम) और हज़रत लूत (अलैहिस्सलाम) नबी थे।
🔹 रसूल (Messenger) कौन होता है?
रसूल वह होता है जिसे अल्लाह नई शरियत या नया दीन लेकर भेजता है।
रसूल का मिशन सिर्फ एक क़ौम तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसका पैग़ाम अक्सर पूरी उम्मत या इंसानियत के लिए होता है।
उदाहरण के तौर पर — हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम), हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत मुहम्मद ﷺ रसूल थे।
नबी और रसूल में मुख्य अंतर
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मतलब में अंतर:
नबी वह होता है जिसे अल्लाह तआला वाही (revelation) भेजता है, और जो लोगों को पहले से मौजूद शरियत यानी पिछले नबी की तालीमात पर अमल करने की दावत देता है।
इसके मुकाबले, रसूल वह होता है जिसे अल्लाह नई शरियत या नया दीन देकर भेजता है ताकि वह इंसानियत तक नया पैग़ाम पहुँचाए। -
मिशन के दायरे में अंतर:
नबी का मिशन अक्सर उसकी अपनी क़ौम या इलाके तक सीमित रहता है।
लेकिन रसूल का मिशन बहुत व्यापक होता है — उसका संदेश पूरी उम्मत या कभी-कभी पूरी इंसानियत के लिए होता है। -
पैग़ाम की प्रकृति में अंतर:
नबी का काम होता है पिछले नबी के दीन को आगे बढ़ाना, लोगों को उसकी याद दिलाना और उन्हें सीधी राह पर रखना।
रसूल का काम होता है नई रहनुमाई, नई किताब या नया कानून (शरियत) लेकर आना, जो पिछले दीन की जगह लेता है। -
ज़िम्मेदारी में अंतर:
नबी की जिम्मेदारी अपनी क़ौम को सुधारने और उन्हें अल्लाह की इबादत की तरफ बुलाने तक होती है।
रसूल की जिम्मेदारी इससे बड़ी होती है — उसे नई उम्मत की तालीम, कानून और अमल की बुनियाद रखनी होती है। -
उदाहरणों से अंतर समझिए:
हज़रत हारून (अलैहिस्सलाम) और हज़रत लूत (अलैहिस्सलाम) नबी थे, जो पहले से मौजूद शरियत पर लोगों को चलाते थे।
जबकि हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम), हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत मुहम्मद ﷺ रसूल थे, जिनके साथ नई किताबें और नई शरियतें आईं। -
दर्जे में अंतर:
रसूल का दर्जा नबी से ऊँचा होता है, क्योंकि रसूल को न सिर्फ वहि दी जाती है बल्कि नई शरियत और नया मिशन भी सौंपा जाता है।
नबी का मकाम भी बहुत ऊँचा होता है, लेकिन रसूल का काम ज़्यादा व्यापक और मुश्किल होता है।
इन तमाम फर्कों को देखने के बाद यह बात साफ़ होती है कि —
हर रसूल नबी होता है, लेकिन हर नबी रसूल नहीं होता।
रसूलों को अल्लाह ने नई उम्मत की रहनुमाई के लिए भेजा, जबकि नबियों ने उसी दीन को आगे पहुँचाया जो पहले से मौजूद था।
कुरआन में जिन नबियों का ज़िक्र है
कुरआन-ए-करीम में सभी 1,24,000 नबियों का नाम नहीं आया।
लेकिन अल्लाह ने उनमें से 25 नबियों और रसूलों के नामों का ज़िक्र किया है।
ये 25 नबी वो हैं जिनकी कहानियाँ और मिशन इंसानियत के लिए मिसाल बने।
उनके नाम इस प्रकार हैं:
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आदम (Adam)
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इदरीस (Enoch)
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नूह (Noah)
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हूद (Hud)
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सालेह (Salih)
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इब्राहीम (Abraham)
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लूत (Lot)
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इस्माईल (Ishmael)
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इस्हाक़ (Isaac)
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याक़ूब (Jacob)
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यूसुफ (Joseph)
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अय्यूब (Job)
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शुऐब (Shuaib)
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मूसा (Moses)
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हारून (Aaron)
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ज़ुलकिफ़्ल (Ezekiel)
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दाऊद (David)
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सुलेमान (Solomon)
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इलयास (Elijah)
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अलयसा (Elisha)
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यूनुस (Jonah)
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ज़करिया (Zechariah)
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याहया (John the Baptist)
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ईसा (Jesus)
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मुहम्मद ﷺ (Prophet Muhammad – आखिरी नबी)
कुरआन में अल्लाह फरमाता है:
“और हमने पहले भी बहुत से रसूल भेजे — कुछ ऐसे जिनकी कहानी हमने तुम्हें सुनाई, और कुछ ऐसे जिनकी कहानी नहीं सुनाई।”
(सूरह गाफिर 40:78)
इससे जाहिर होता है कि कुरआन में हर नबी का नाम नहीं बताया गया, बल्कि सिर्फ कुछ का ज़िक्र इसलिए है ताकि इंसान सबक हासिल कर सके।
नबियों का मिशन: इंसानियत की रहनुमाई
हर नबी का मकसद एक ही था — अल्लाह की इबादत की दावत देना और शिर्क (मूर्तिपूजा) से रोकना।
चाहे हज़रत नूह (अ.स) की कौम हो जो नाव में सवार होकर बचे, या हज़रत इब्राहीम (अ.स) जिन्होंने आग में जाने से भी परहेज़ नहीं किया — सबका संदेश एक था:
“ला इलाहा इल्लल्लाह” — अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।
हर नबी अपने दौर की बुराइयों के खिलाफ खड़ा हुआ।
उन्होंने इंसान को ज़ुल्म, फ़साद, झूठ, और लालच से बचाकर इंसाफ़, सब्र और नेक-अख़लाक़ की तरफ बुलाया।
नबी मुहम्मद ﷺ — आख़िरी नबी
इस्लाम का सबसे बड़ा उसूल है कि हज़रत मुहम्मद ﷺ आखिरी नबी हैं।
उनके बाद कोई नबी या रसूल नहीं आएगा।
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है:
“मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं, बल्कि वह अल्लाह के रसूल और आख़िरी नबी हैं।”
(सूरह अल-अहज़ाब 33:40)
रसूलुल्लाह ﷺ के बाद जो भी “नबूवत” का दावा करे, वह इस्लामी अकीदे के खिलाफ है।
इस्लाम में ये ईमान का हिस्सा है कि हम हर नबी को मानें, लेकिन ये भी मानें कि आखिरी नबी सिर्फ मुहम्मद ﷺ हैं।
नबियों की तालीमात से हमें क्या सीख मिलती है
नबियों की ज़िंदगी सिर्फ इतिहास नहीं — बल्कि इंसानियत के लिए ज़िंदा मार्गदर्शन है।
उनकी ज़िंदगी से हमें ये सीखें मिलती हैं:
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तौहीद पर ईमान: सिर्फ अल्लाह की इबादत करो।
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सब्र और यकीन: जैसे नबी अय्यूब (अ.स) ने मुश्किलों में सब्र किया।
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इंसाफ और रहमदिली: जैसे नबी सुलेमान (अ.स) ने फैसले किए।
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कुर्बानी का जज़्बा: जैसे नबी इब्राहीम (अ.स) ने अपने बेटे को कुर्बान करने की नीयत की।
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तौबा और रहमत: जैसे नबी यूनुस (अ.स) ने मछली के पेट से तौबा की और अल्लाह ने माफ़ किया।
हर नबी की कहानी हमें बताती है कि इमान और नेक अमल से ही इंसान कामयाब होता है।
नबियों पर ईमान रखना ईमान का हिस्सा है
इस्लाम के छह इमान के अरकान (Pillars of Faith) हैं — जिनमें एक है:
“ईमान लाना तमाम नबियों पर।”
मुसलमान के लिए ये ज़रूरी है कि वह हर नबी और रसूल को माने, चाहे उनका नाम कुरआन में हो या न हो।
किसी एक नबी का इनकार करना, पूरे ईमान को कमजोर कर देता है।
कुरआन कहता है:
“जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाते हैं और उनमें फर्क नहीं करते, वही असली मोमिन हैं।”
(सूरह अन-निसा 4:152)
नतीजा: नबियों का सिलसिला रहमत और हिदायत का सफर
अगर हम पूरे इस्लामी इतिहास को देखें, तो हमें पता चलता है कि नबियों का सिलसिला अल्लाह की रहमत था।
हर नबी इंसानियत के लिए एक रोशनी लेकर आया — और ये रोशनी आखिरी बार हज़रत मुहम्मद ﷺ के ज़रिए पूरी दुनिया तक पहुँची।
आज हमारे लिए ज़रूरी है कि:
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हम हर नबी का सम्मान करें,
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उनकी तालीमात पर अमल करें,
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और अपने बच्चों को उनकी कहानियाँ बताएं ताकि उनके दिल में ईमान और इंसानियत दोनों पनपें।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस्लाम में कुल 1,24,000 नबी भेजे गए — हर एक का मकसद इंसान को अल्लाह की तरफ बुलाना था।
कुरआन में 25 नबियों का ज़िक्र है, और आखिरी नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ हैं।
नबियों पर ईमान रखना हर मुसलमान के लिए फ़र्ज़ है, क्योंकि यही ईमान की बुनियाद है।
उनकी ज़िंदगी हमें सिखाती है कि सच्चाई, सब्र, और तौहीद ही असली राह है जो हमें जन्नत तक ले जाती है।